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________________ के आगे "काऊणं-कृत्वा'' इस पद का सर्वत्र अध्याहार करके यह अर्थ भी संभव हो सकता है कि-उस पुरुष को राजपुरुषों ने चौंतरे पर बिठाया, और उसके आठ चाचाओं को आगे कर लिया, तथा उनके आगे अर्थात् सामने उस वध्य पुरुष को निर्दयता पूर्वक मारा, इत्यादि। सगे सम्बन्धियों के सामने मारने या पीटने का अर्थ-दोषी या अपराधी को अधिकाधिक दुःखित करना होता है। यह अर्थ इसलिए अधिक सम्भव प्रतीत होता है कि न्यायानुसार तो जो कर्म करे वही उसका फल भोगे। यह तो न्याय से सर्वथा विपरीत है कि अपराधी के साथसाथ निरपराधी भी दंडित किए जाएं। ___ वध्यव्यक्ति के पारिवारिक लोग उसके कार्यों के सहयोगी थे; अनुमोदक थे, इसलिए उन्हें उसके सामने दण्डित किया गया है। तथा- वध्यव्यक्ति को अत्यधिक दुःखित करने के लिए उसके पारिवारिक व्यक्तियों के सामने उसे मारा-पीटा गया है। इन दोनों अर्थों के अतिरिक्त तीसरा यह अर्थ भी असंभव नहीं है कि महाबल नरेश ने मात्र अपने क्रोधावेश के ही कारण वध्यव्यक्ति के निर्दोष परिवार को भी मारने की कड़ी आज्ञा दे डाली हो। रहस्यं तु केवलिगम्यम्। प्रस्तुत सूत्र में श्री गौतम स्वामी द्वारा अवलोकित करुणाजनक दृश्य का वर्णन किया गया है। अब सूत्रकार अग्रिम सूत्र में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास श्री गौतम स्वामी द्वारा किए गए उक्त-विषय-सम्बन्धी प्रश्न का वर्णन करते हैं मूल-तते णं से भगवं गोतमे तं पुरिसं पासति 2 त्ता इमे एयारूवे अज्झत्थिए 5 समुप्पन्ने जाव तहेव णिग्गते एवं वयासी-एवं खलु अहं भंते ! तं चेव जाव, से णं भंते ! पुरिसे पुव्वभवे के आसि ? जाव विहरति ? ___ छाया-ततः स भगवान् गौतमः तं पुरुषं पश्यति दृष्ट्वा अयमेतद्रूपः आध्यात्मिकः 5 समुत्पन्नो यावत् तथैव निर्गतः एवमवदत्-एवं खलु अहं-भदन्त ! तच्चैव यावत् स भदन्त ! पुरुषः पूर्वभवे कः आसीत् ? यावद् विहरति। . पदार्थ-तते णं-तदनन्तर। से-वह। भगवं-भगवान्। गोतमे-गौतम। तं-उस। पुरिसं-पुरुष को। पासति-देखते हैं / 2 त्ता-देख कर / इमे-यह / एयारूवे-इस प्रकार का।अझथिए ५-आध्यात्मिकसंकल्प 5 / समुप्पन्ने-उत्पन्न हुआ। जाव-यावत्। तहेव-तथैव-पहले की भान्ति। णिग्गते-नगर से निकले, तथा भगवान् के समीप आकर। एवं-इस प्रकार / वयासी-कहने लगे। भंते ! हे भगवन् ! अहंमैं। एवं-इस प्रकार आप की आज्ञा के अनुसार आहार के लिए गया। खलु-निश्चयार्थक है। तं चेव-उस देखे हुए दृश्य का। जाव-यावत् वर्णन किया तथा पूछा कि। भंते !-हे भगवन् ! से णं-वह / पुरिसे 354 ] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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