________________ हुई है कि मानो उसने कामध्वजा वेश्या की प्राप्ति में सफलता प्राप्त कर ली हो, तथा उसके साथ वह वासना-पूर्ति में लगा हुआ हो। और उस गणिका की प्राप्ति में वह सतत सावधान रहता है, यह तदर्थोपयुक्त शब्द का भाव है। एवं उसने उसी के लिए अपनी समस्त इन्द्रियां अर्पण कर दी हैं, इसी कारण से उसे तदर्पितकरण कहा है। इसी लिए वह कामध्वजा के प्रत्येक अंगप्रत्यंग तथा रूप, लावण्य और प्रेम की भावना से भावित हुआ तन्मय हो रहा था। उज्झितक कुमार किसी ऐसे अवसर की खोज में था जिस में उसका कामध्वजा से मेल-मिलाप हो जाए। एतदर्थ वह उस समय को देख रहा था कि जिस समय कामध्वजा के पास राजा की उपस्थिति न हो, राजपरिवार का कोई आदमी न हो तथा कोई नागरिक भी न हो। तात्पर्य यह है कि जिस समय किसी अन्य व्यक्ति का वहां पर गमनागमन न हो ऐसे समय की वह प्रतीक्षा कर रहा था, और उसके लिए यथाशक्ति प्रयत्न भी कर रहा था। ___अब सूत्रकार निम्नलिखित सूत्र में उज्झितक कुमार के उक्त प्रयत्नों में सफल होने का उल्लेख करते हैं मूल-तए णं से उज्झियए दारए अन्नया कयाइ कामज्झयाए गणियाए अंतरं लभेति। कामज्झयाए गणियाए गिहं रहस्सियगं अणुप्पविसइ 2 त्ता कामज्झयाए गणियाए सद्धिं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरति। - छाया-ततः स उज्झितको दारक: अन्यदा कदाचित् कामध्वजाया गणिकाया अन्तरं लभते। कामध्वजाया गणिकाया गृहं राहस्यिकमनुप्रविशति, अनुप्रविश्य कामध्वजया गणिकया सार्द्धमुदारान् मानुष्यकान् भोगभोगान् भुंजानो विहरति / पदार्थ-तए णं-तदनन्तर / अन्नया कयाइ-किसी अन्य समय / से-वह / उज्झियए-उज्झितक। दारए-बालक। कामज्झयाए-कामध्वजा। गणियाए-गणिका के। अंतरं-अन्तर-जिस समय राजा वहां आया हुआ नहीं था उस समय को। लभेति-प्राप्त कर लेता है। कामज्झयाए-कामध्वजा। गणियाएगणिका के। गिह-गृह में। रहस्सियगं-गुप्त रूप से। अणुप्पविसइ-प्रवेश करता है। 2 त्ता-प्रवेश करके। कामज्झयाए गणियाए-कामध्वजा गणिका के। सद्धिं-साथ। उरालाइं-उदार-प्रधान। माणुस्सगाईमनुष्य-सम्बन्धी। भोगभोगाई-भोगपरिभोगों का। भुंजमाणे-उपभोग करता हुआ।विहरति-विहरण करने लगा-सानन्द समय बिताने लगा। मूलार्थ-तदनन्तर वह उज्झितक कुमार किसी अन्य समय में कामध्वजा गणिका के पास जाने का अवसर प्राप्त कर गुप्त रूप से उसके घर में प्रवेश करके कामध्वजा वेश्या के साथ मनुष्य-सम्बन्धी उदार विषय-भोगों का उपभोग करता हुआ सानन्द प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय [309