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________________ पागल सा बन गया। उसकी मानसिक लग्न को व्यक्त करने के लिए सूत्रकार ने जिन शब्दों का निर्देश किया है, उनके अर्थ की भावना करते हुए वे उस की हृदयगत लग्न के प्रतिबिम्बस्वरूप ही प्रतीत होते हैं / वृत्तिकार के शब्दों में उनकी व्याख्या इस प्रकार है___"मुच्छिए" मूर्च्छितो-मूढो दोषेष्वपि गुणाध्यारोपात् “गिद्धे" तदाकांक्षावान् "गढिए" ग्रथितस्तद्विषयस्नेहतन्तुसन्दभितः, "अज्झोववन्ने" आधिक्येन तदेकाग्रतां गतोऽध्युपन्नः अतएवान्यत्र कुत्रापि वस्त्वन्तरे "सुइंच"स्मृति-स्मरणम् "रइंच" रतिम्आसक्तिम्, "धिइंच" धृतिं च चित्तस्वास्थ्यम्, "अविंदमाणे"अलभमानः,"तच्चित्ते" तस्यामेव चित्तं भावमनः सामान्येन वा मनो यस्य स तथा-"तम्मणे" द्रव्यमनः प्रतीत्य विशेषोपयोगं वा। "तल्लेसे" कामध्वजागताऽशुभात्मपरिणामविशेषः लेश्या हि कृष्णादिद्रव्यसाचिव्य-जनित आत्मपरिणाम इति, "तदझवसाणे" तस्यामेवाध्यवसानं भोगक्रियाप्रयत्नविशेषरूपं यस्य स तथा। "तदट्ठोवउत्ते" तदर्थं तत्प्राप्तये उपयुक्तः उपयोगवान् यः स तथा, "तयप्पियकरणे' तस्यामेवार्पितानि-ढौकितानि करणानीन्द्रियाणि येन स तथा, "तब्भावणाभाविए" तद्-भावनया कामध्वजाचिन्तया भावितो-वासितो यः स तथा, कामध्वजाया गणिकाया बहून्यन्तराणि च राजगमनस्यान्तराणि "छिद्दाणि य" छिद्राणि राजपरिवारविरलत्वानि "विवराणि". शेषजनविरहान्, पडिजागरमाणे, गवेषयन्। इन पदों का भावार्थ निम्नोक्त है अचेतनावस्था का ही दूसरा नाम मूर्छा है, अथवा दोषों में गुणों का आरोपण ही मूर्छा है। मूर्छा से युक्त मूर्च्छित कहलाता है। गृद्ध शब्द से लम्पट अर्थ अभिप्रेत है। अथवा यूं समझें कि जिसकी जिस में अभिकांक्षा है वह गद्ध है। किसी भी विषय में स्नेहतन्तुओं से सम्बद्धव्यक्ति को ग्रथित कहा जाता है। किसी भी काम में अधिक एकांग्रता-प्राप्त व्यक्ति अध्युपपन्न कहलाता है। ये सारे विशेषण उज्झितक कुमार की मनोदशा के परिचायक हैं। कामध्वजा में अत्यन्त आसक्त होने से उज्झितक कुमार को अन्यत्र कहीं पर भी मानसिक विश्रान्ति उपलब्ध नहीं होती। उसका भाव तथा द्रव्यमन उसी में संलग्न हो रहा है। तद्गतचित्त और तद्गतमन इन दोनों में चित्त शब्द भाव मन का और मन शब्द द्रव्य मन का बोधक है। आत्मा का परिणाम विशेष अर्थात् कृष्णादि द्रव्यों के सान्निध्य से उत्पन्न होने वाले आत्मा के शुभ या अशुभ परिणाम को लेश्या कहते हैं, और "तल्लेश्य" शब्दगत लेश्या शब्द का अर्थ प्रकृत में अशुभ आत्म-परिणाम है। प्रस्तुत प्रकरण में अध्यवसान का अर्थ है-भोग (सांसारिक वासना ) की क्रियाएं-प्रयत्न विशेष। उस प्रयत्न-विशेष वाले व्यक्ति को तदध्यवसान कहते हैं। सारांश यह है कि उज्झितक कुमार की कामध्वजा वेश्यागत तल्लीनता इतनी बढ़ी 308 ] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय . [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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