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________________ नामक।दारयं-बालक को।सातो-उसके अपने।गिहातो-घर से। णिच्छुभंति-निकाल देते हैं। णिच्छुभित्तानिकाल कर / तं गिहं-उस घर को। अन्नस्स-अन्य को। दलयंति-दे देते हैं। तते णं-तदनन्तर / से-वह। उज्झियते-उज्झितक। दारए-बालक। सयातो गिहातो-अपने घर से। निच्छूढे समाणे-निकाला हुआ। वाणियग्गामे णगरे-वाणिजग्राम नगर में। सिंघाडग-त्रिकोणमार्ग आदि। जाव-यावत्। पहेसु-सामान्य मार्गों पर / जूयखलएसु-द्यूतस्थानों-जूएखानों में। वेसियाघरएसु-वेश्यागृहों में। पाणागारेसु-मद्यस्थानोंशराब खानों में। सुहंसुहेणं-सुख-पूर्वक। विहरइ-परिभ्रमण कर रहा है। तते णं-तदनन्तर। से-वह। उज्झितए-उज्झितक / दारए-बालक। अणोहट्टिए-अनपघट्टक-बलपूर्वक हाथ आदि से पकड़ कर जिसको कोई रोकने वाला न हो। अणिवारए-अनिवारक-जिस को वचन द्वारा भी कोई हटाने वाला न हो। सच्छंदमती-स्वछंदमति-अपनी बुद्धि से ही काम करने वाला अर्थात् किसी दूसरे की न मानने वाला। सइरप्पयारे-निजमत्यनुसार यातायात करने वाला। मज्जप्पसंगी-मदिरा पीने वाला। चोर-चौर्य-कर्म। जूय-द्यूत-जूआ तथा। वेसदार-वेश्या और परस्त्री का। पसंगी-प्रसंग करने वाला अर्थात् चोरी करने, जूआ खेलने, वेश्या गमन और पर-स्त्रीगमन करने वाला। जाते यावि होत्था-भी हो गया। तते णंतदनन्तर / से-वह। उज्झियते-उज्झितक। अन्नया-अन्य। कयाती-किसी समय। कामज्झायाए-कामध्वजा नामक / गणियाए-गणिका के। सद्धिं-साथ। संपलग्गे-संप्रलग्न-संलग्न / जाते यावि होत्था-हो गया अर्थात् उसका कामध्वजा वेश्या के साथ स्नेहसम्बन्ध स्थापित हो गया, तदनन्तर वह / कामज्झयाएकामध्वजा। गणियाए-गणिका-वेश्या के। सद्धिं-साथ। विउलाइं-महान। उरालाइं-उदार-प्रधान / माणुस्सगाई-मनुष्यसम्बन्धी। भोगभोगाई-मनोज्ञ भोगों का। भुंजमाणे-उपभोग करता हुआ। विहरतिसमय बिताने लगा। मूलार्थ-तदनन्तर नगर-रक्षक ने सुभद्रा सार्थवाही की मृत्यु का समाचार प्राप्त कर उज्झितक कुमार को घर से निकाल दिया, और उस का वह घर किसी दूसरे को दे दिया। अपने घर से निकाला जाने पर वह उज्झितक कुमार वाणिजग्राम नगर के त्रिपथ, चतुष्पथ यावत् सामान्य मार्गों पर तथा द्यूतगृहों, वेश्यागृहों और पानगृहों में सुख-पूर्वक परिभ्रमण करने लगा। तदनन्तर बेरोकटोक स्वच्छन्दमति, एवं निरंकुश होता हुआ वह चौर्यकर्म, द्यूतकर्म, वेश्यागमन और परस्त्रीगमन में आसक्त हो गया। तत्पश्चात् किसी समय कामध्वजा वेश्या से स्नेह-सम्बन्ध स्थापित हो जाने के कारण वह उज्झितक उसी वेश्या के साथ पर्याप्त उदार-प्रधान मनुष्य सम्बन्धी विषय-भोगों का उपभोग करता हुआ समय व्यतीत करने लगा। टीका-कर्मगति की विचित्रता को देखिए। जिस उज्झितक कुमार के पालन-पोषण के लिए पांच धायमाताएं विद्यमान थीं और माता-पिता की छत्रछाया में जिसका राजकुमारों 1. जिस व्यक्ति ने उज्झितक के पिता से रुपया लेना था, अधिकारी लोगों ने उज्झितक को निकाल कर रुपये के बदले उस का घर उस (उत्तमर्ण) को सौंप दिया। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय [301
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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