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________________ आने से। निव्वुडुभंडसारे-जिस की उक्त चारों प्रकार की बेचने योग्य बहुमूल्य वस्तुएं जलमग्न हो गई हैं तथा / अत्ताणे- अत्राण', और ।असरणे-अशरण हुआ।से-वह। विजयमित्ते-विजयमित्र / कालधम्मुणाकालधर्म-मृत्यु से। संजुत्ते-संयुक्त हुआ, अर्थात् मृत्यु को प्राप्त हो गया। तते णं-तदनन्तर / जहा-जिस प्रकार। जे-जिन। बहवे-अनेक। ईसर-ईश्वर। तलवर-तलवर। माडम्बिय-माडम्बिक। कोडुंबियकौटुम्बिक। इब्भ-इभ्य-धनी। सेट्ठि-श्रेष्ठी-सेठ। सत्थवाहा-सार्थवाहों ने। लवणसमुद्दे-लवण-समुद्र में। पोयविवत्तियं-जिस के जहाज़ पर आपत्ति आ गई है। निव्वुड्डभंडसारं-जिस का सार-भण्ड (महामूल्य वाले वस्त्राभूषण आदि) समुद्र में डूब गया है ऐसा। कालधम्मणा संजुत्तं-काल-धर्म से संयुक्त हुए। से-उस / विजयमित्तं-विजयमित्र / सत्थवाह-सार्थवाह को। सुणेति-सुनते हैं। तहा-उस. समय। ते-वे। हत्थनिक्खेवं च-जो पदार्थ अपने हाथ से लिया हुआ हो अर्थात् धरोहर / बाहिरभंडसारं च-तथा बाह्य-धरोहर से अतिरिक्त भाण्डसार-बहुमूल्य वाले वस्त्र आभूषण आदि। गहाय-ग्रहण कर। एगंतंएकांत में। अवक्कमंति-चले जाते हैं। तते णं-तदनन्तर / सा-वह / सुभद्दा सत्थवाही-सुभद्रा सार्थवाही। विजयमित्तं-विजयमित्र। सत्थवाह-सार्थवाह को जिस के। पोतविवत्तियं-जहाज पर विपत्ति आ गई है और। निव्वुडभंडसारं-जिस का सारभाण्ड समुद्र में निमग्न हो गया है, ऐसे उस को। लवणसमुद्देलवणसमुद्र में। कालधम्मुणा-काल धर्म से। संजुत्तं-संयुक्त मरे हुए को। सुणेति 2 त्ता-सुनती है, सुन कर। महया-महान्। पतिसोएणं-पति शोक से। अप्फुण्णा समाणी-व्याप्त हुई अर्थात् अत्यन्त दुःखित हुई 2 / परसुनियत्ता विव चंपगलता-कुल्हाड़ी से काटी गई चम्पक (वृक्ष विशेष, अथवा चम्पा के पेड़) की लता-शाखा की भांति। धसत्ति-धड़ाम से। धरणीतलंसि-जमीन पर। सव्वंगेहिं-सर्व अंगों से। संनिवडिया-गिर पड़ी। तते णं-तदनन्तर। सा-वह / सुभद्दा-सुभद्रा / सत्थवाही-सार्थवाही। मुहत्तंतरेणंएक मुहूर्त के अनन्तर / आसत्था समाणी-आश्वस्त हुई-सावधान हुई। बहूहिं-अनेक। मित्त-मित्र ज्ञाति आदि। जाव-यावत् संबन्धियों से। परिवुडा-घिरी हुई। रोयमाणी-रुदन करती हुई। कंदमाणी-क्रन्दन करती हुई। विलवमाणी-विलाप करती हुई। विजयमित्तस्स-विजयमित्र / सत्थवाहस्स-सार्थवाह की। लोइयाइं-लौकिक। मयकिच्चाई-मृतक-क्रियाओं को। करेति-करती है। तते णं-तदनन्तर। सा-वह। सुभद्दा-सुभद्रा। सत्थवाही-सार्थवाही।अन्नया कयाती-किसी अन्य समय। लवणसमुद्दोत्तरणं-लवणसमुद्र में गमन / लच्छिविणासं च-लक्ष्मी-धन के विनाश / पोतविणासं च-जहाज़ के डूबने तथा। पतिमरणं च-पति के मरण का। अणुचिंतेमाणी-चिन्तन करती हुई। कालधम्मुणा-काल-धर्म से। संजुत्ता-संयुक्त 1. जिस की कोई राक्षा करने वाला न हो वह अत्राण कहलाता है। 2. जिस का कोई आश्रयदाता न हो उसे अशरण कहते हैं। 3. लता के अनेकों अर्थों में से बेल यह अर्थ अधिक प्रसिद्ध एवं व्यवहार में आने वाला है। बेल का अर्थ है- वह छोटा कोमल पौधा जो अपने बल पर ऊपर की ओर उठ कर बढ़ नहीं करता। परन्तु प्रस्तुत प्रकरण में परश (एक अस्त्र जिस में एक डण्डे के सिरे पर अर्द्ध चन्द्राकार लोहे का फाल लगा रहता है, कुल्हाड़ी विशेष) से काटी हुई चम्पक-लता की भांति धड़ाम से ज़मीन पर गिर पड़ी, ऐसा प्रसंग चल रहा है, ऐसी स्थिति में यदि लता का अर्थ बेल करते हैं तो इस अर्थ में यह भाव संकलित नहीं होता क्योंकि बेल तो स्वयं ज़मीन पर होती है उस का धड़ाम से ज़मीन पर गिरना कैसे हो सकता है ? अतः प्रस्तुत प्रकरण में लता का शाखा अर्थ ही उपयुक्त प्रतीत होता है। 296 ] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय .[प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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