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________________ "एयसमायारे" इन पदों का ग्रहण करना। इस तरह से-१एतत्कर्मा, एतत्प्रधान, एतद्विद्य और एतत्समाचार ये चार पद संकलित होते हैं। ___सागरोपम की व्याख्या पहले की जा चुकी है। स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट भेद से दो प्रकार की होती है। कम से कम स्थिति को जघन्यस्थिति और अधिक से अधिक स्थिति को उत्कृष्टस्थिति कहते हैं। अब सूत्रकार निम्नलिखित सूत्र में गोत्रास की अग्रिम जीवनी का वर्णन करते हैं मूल-तते णं सा विजयमित्तस्स सत्थवाहस्स सुभद्दा भारिया जातनिंदुया यावि होत्था। जाया जाया दारगा विनिहायमावजंति। तते णं से गोत्तासे कूड० दोच्चाओ पुढवीओ अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव वाणियग्गामे णगरे विजयमित्तस्स सत्थवाहस्स सुभद्दाए भारियाए कुच्छिंसि पुत्तत्ताए उववन्ने। तते णं सा सुभद्दा सत्थवाही अन्नया कयाइ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया। तते णं सा सुभद्दा सत्थवाही तं दारगंजातमेत्तयं चेव एगते उक्कुरुडियाए उज्झावेति २त्ता दोच्चंपि गेण्हावेति 2 त्ता आणुपुव्वेणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी संवड्ढेति। तते णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो ठितिपडियं च चंदसूरदसणं च जागरियं च महया इड्ढिसक्कारसमुदएणं करेंति। तते णं तस्स दारगस्स अम्मापितरो एक्कारसमे दिवसे निव्वत्ते, संपत्ते बारसाहे.अयमेयारूवं गोण्णं गुणनिप्फन्नं नामधेजं करेंति। जम्हा णं अम्हं इमे दारए जायमेत्तए चेव एगंते उवकुरुडियाए उज्झिते, तम्हा णं होउ अम्हं दारए उज्झियए नामेणं। तते णं से उझियए दारए पंचधातीपरिग्गहिते, तंजहा-खीरधातीए 1 मज्जण० 2 मंडण. 3 कीलावण० 4 अंकधातीए 5 जहा दढपतिण्णे जाव निव्वायनिव्वाघायगिरिकंदरमल्लीणे व्व चंपयपायवे सुहंसुहेणं परिवड्ढति। - छाया-ततः सा विजयमित्रस्य सार्थवाहस्य सुभद्रा भार्या जातिनिंदुका (1) १-एतत्कर्मा-जिस का "-गो आदि पशुओं की हिंसा का और मद्यापान-क्रिया का करना-" यह एक मात्र कर्त्तव्य हो। २-एतत्प्रधान-हिंसा और मद्य पानादि क्रियाओं के करने में ही जो रात-दिन तत्पर रहता हो। ३-एतद्विद्य-हिंसा और मद्य-पान करना ही जिस के जीवन की विद्या (ज्ञान) हो। ४-एतत्-समाचार-गो आदि की हिंसा करना और मदिरा के नशे में मस्त रहना ही जिस का आचरण बना हुआ हो। श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय * [ प्रथम श्रुतस्कंध 288 ]
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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