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________________ त्ता उप्पलाए कूडग्गाहिणीए उवणेति। तते णं सा उप्पला भारिया तेहिं बहूहिं गोमंसेहिं सोल्लेहिं जाव सुरं च 5 आसा०४ तं दोहलं विणेति।तते णं सा उप्पला कूडग्गाही संपुण्णदोहला संमाणियदोहला विणीयदोहला वोच्छिण्णदोहला संपन्नदोहला तं गब्भं सुहंसुहेणं परिवहति। छाया-ततः स भीमः कूटग्राहोऽर्द्धरात्रकालसमये एकोऽद्वितीयः संनद्ध यावत् प्रहरणः स्वस्माद् गृहान्निर्गच्छति, निर्गत्य हस्तिनापुरं मध्यमध्येन यत्रैव गोमंडपस्तत्रैवोपागतः, उपागत्य बहूनां नगरगोरूपाणां यावद् वृषभाणां चाप्येकेषां ऊधांसि छिनत्ति, यावद् अप्येकेषां कम्बलान् छिनत्ति, अप्येकेषामन्यान्यान्यगोपांगानि विकृन्तति, विकृत्य यत्रैव स्वकं गृहं तत्रैवोपागच्छति उपागत्य उत्पलायै कूटग्राहिण्यै उपनयति / ततः सा उत्पला भार्या तैर्बहुभिर्गोमांसैः शूल्यैः यावत् सुरां च 5 आस्वा० 4 तं दोहदं विनयति / ततः सा उत्पला कूटग्राही सम्पूर्णदोहदा, संमानितदोहदा, विनीतदोहदा, व्युच्छिन्नदोहदा, सम्पन्नदोहदा, तं गर्भं सुखसुखेन परिवहति।। __ पदार्थ-तते णं-तदनन्तर। से-वह। भीमे कूड०-भीम कूटग्राह। अड्ढरत्तकालसमयंसिअर्द्धरात्रि के समय। एगे-अकेला। अबीए-जिस के साथ दूसरा कोई नहीं। सण्णद्ध-दृढ़ बन्धनों से बन्धे हुए और लोहमय कसूलक आदि से युक्त कवच को धारण किए। जाव-यावत्। पहरणे-आयुध और प्रहरण ले कर। सयाओ-अपने। गिहाओ-घर से। निग्गच्छति 2 त्ता-निकलता है, निकल कर। हत्थिणाउरं-हस्तिनापुर नामक नगर के। मज्मंमझेणं-मध्य में से होता हुआ। जेणेव-जहां। गोमंडवेगोमंडप-गौशाला थी। तेणेव-वहां पर। उवागते २-आता है आकर। बहूणं-अनेक। णगरगोरूवाणं- . नागरिक पशुओं के। जाव-यावत्। वसभाण य-वृषभों के मध्य में से। अप्पेगइयाणं-कई एक के। ऊहे-ऊधस् को। छिंदति-काटता है। जाव-यावत्। अप्पेइगयाणं-कई एक के। कंबलए-कम्बलसास्ना को। छिंदति-काटता है। अप्पेगइयाणं-कई एक के। अण्णमण्णाइं-अन्यान्य। अंगोवंगाईअंगोपांगों को। वियंगेति २-काटता है काट कर। जेणेव-जहां पर / सए गेहे-अपना घर था। तेणेव-वहीं पर। उवागच्छति २-आता है, आकर। कूडग्गाहिणीए-कूटग्राहिणी। उप्पलाए-उत्पला को। उवणेतिदे देता है। तते णं-तदनन्तर / सा उप्पला भारिया-वह उत्पला भार्या। तेहिं-उन / बहुहि-नाना प्रकार के। जाव-यावत् / सोल्लेहि-शूलाप्रोत / गोमंसेहि-गौ के मांसों के साथ सुरं च ५-सुरा प्रभृति मद्य विशेषों का। आसा. ४-आस्वादन आदि करती हुई। तं दोहदं-उस दोहद को। विणेति-पूर्ण करती है। तते णंतदनन्तर / संपुण्णदोहला-सम्पूर्ण दोहद वाली।संमाणियदोहला-सम्मानित दोहद वाली। विणीयदोहलाविनीत दोहद वाली। वोच्छिन्नदोहला-व्युच्छिन्न दोहद वाली। संपन्नदोहला-सम्पन्न दोहद वाली। सा उप्पला कूडग्गाही-वह उत्पला कूटग्राही। तं गब्भं-उस गर्भ को। सुहंसुहेणं-सुखपूर्वक। परिवहति प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय [277
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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