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________________ हो कर सूखने लगी और उस का शरीर मांस के सूखने से अस्थिपञ्जर सा हो गया। तथा वह सर्वथा मुरझा गई। प्रस्तुत सूत्र पाठ में "-सुक्खा -शुष्का-" आदि सभी पद उस के विशेषण रूप में निर्दिष्ट हुए हैं। उन की व्याख्या इस प्रकार है १"-शुष्का-" रुधिरादि के क्षय हो जाने के कारण उस का शरीर सूख गया। 2 बुभुक्षा-भोजन न करने से बलहीन हो कर बुभुक्षिता सी रहती है। 3 निर्मांसा-भोजनादि के अभाव से शरीरगत मांस सूख गया है। 4 अवरुग्णा-उदास-इच्छाओं के भग्न हो जाने से उदास सी रहती है। 5 अवरुग्णसरीरा-निर्बल अथवा रुग्ण शरीर वाली। 6 निस्तेजस्कातेज-कांति रहित / 7 दीन-विमनो-वदना-शोकातुर अथच चिन्ताग्रस्त मुख वाली। यहांदीना चासौ विमनोवदना च"-ऐसा विग्रह किया जाता है। किसी किसी प्रति में "-दीणविमणहीणा-" ऐसा पाठान्तर मिलता है। टीकाकार इस विशेषण की निम्नोक्त व्याख्या करते हैं ___"-दीना दैन्यवती, विमनाः शून्यचित्ता हीणा च भीतेति कर्मधारयः" अर्थात् वह दीनता, मानसिक अस्थिरता तथा भय से व्याप्त थी।८-"पांडुरितमुखी-"उस का मुख पीला पड़ गया था। ९"-अवमथित-नयन-वदन-कमला-" जिस के नेत्र तथा मुखरूप कमल मुाया हुआ था। टीकाकार ने इस पद की व्याख्या इस प्रकार की है. "-अधोमुखी कृतानि नयनवदनरूपाणि कमलानि यया सा तथा-" अर्थात् जिस ने कमलसदृश नयन तथा मुख नीचे की ओर किए हुए हैं। इसीलिए वह यथोचित रूप से पुष्प, वस्त्र, गंध, माल्य [फूलों की माला] अलंकार-भूषण तथा हार आदि का उपभोग नहीं कर रही थी। तात्पर्य यह है कि दोहद की पूर्ति के न होने से उस ने शरीर का श्रृंगार करना भी छोड़ दिया था, और वह करतल मर्दित-हाथ के मध्य में रख कर हथेली से मसली गई कमल माला की भांति शोभा रहित, उदासीन और किंकर्तव्य विमूढ़ सी हो कर उत्साहशून्य एवं चिन्तातुर हो रही थी। "ओहयः जाव झियाति" इस वाक्य गत "जाव-यावत्" पद से "ओहयमण संकप्पा' [जिसके मानसिक संकल्प विफल हो गए हैं] "करतलपल्हत्थमुही" [जिस का मुख हाथ पर स्थापित हो] अट्टज्झाणोवगया- [आर्तध्यान को प्राप्त२] इस पाठ का ग्रहण 1. विमनस इव विगतचेतस इव वदनं यस्याः सेति भावः। 2. आर्ति नाम दु:ख या पीड़ा का है, उस में जो उत्पन्न हो उसे आर्त कहते हैं, अर्थात् जिस में दुःख का . चिन्तन हो उस का नाम आर्तध्यान है। आर्तध्यान के भेदोपभेदों का ज्ञान अन्यत्र करें। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय [275
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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