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________________ भारते वर्षे हस्तिनापुरं नाम नगरमभूत् ऋद्धः / तत्र हस्तिनापुरे नगरे सुनन्दो नाम राजा बभूव महाहि / तत्र हस्तिनापुरे नगरे बहुमध्यदेशभागेऽत्र महानेको गोमण्डपो बभूव। अनेकस्तम्भशत-सन्निविष्टः प्रासादीयः 4 / तत्र बहवो नगरगोरूपाः सनाथाश्च अनाथाश्च नगरगव्यश्च नगरबलीवर्दाश्च नगरपड्डिकाश्च नगरवृषभाश्च प्रचुरतृणपानीयाः निर्भयाः निरुपसर्गाः सुखंसुखेन परिवसंति। ___ पदार्थ-एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। गोतमा!-हे गौतम! तेणं कालेणं-उस काल में। तेणं समएणं-उस समय में। इहेव-इसी। जंबुद्दीवे दीवे-जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत। भारहे वासे-भारत वर्ष में। हथिणाउरे-हस्तिनापुर / नाम-नामकाणगरे-नगर।होत्था-था। रिद्ध-अनेक विशाल भवनों से युक्त, भयरहित तथा धनधान्यादि से भरपूर था। तत्थ णं हथिणाउरेणगरे-उस हस्तिनापुर नगर में। सुणंदे-सुनन्द। णाम-नाम का। महया हि-महाहिमवान्-हिमालय के समान महान। राया-राजा। होत्था-था। तत्थ णं हत्थिणाउरे णगरे-उस हस्तिनापुर नगर के। बहुमज्झदेसभाए-लगभग मध्य प्रदेश में। एगे-एक। महं-महान / अणेगखंभसयसंनिविद्वे-सैंकड़ों स्तम्भों से निर्माण को प्राप्त हुआ। पासाइए ४-मन को प्रसन्न करने वाला, जिस को देखते-देखते आंखें नहीं थकती थीं, जिसे एक बार देख लेने पर भी पुनर्दर्शन की लालसा बनी रहती थी, जिस की सुन्दरता दर्शक के लिए देख लेने पर भी नवीन ही प्रतिभासित होती थी। गोमंडवे-गोमण्डप-गोशाला। होत्था-था। तत्थ णं-वहां पर। बहवे-अनेक। णगरगोरूवा-नगर के गाय-बैल आदि चतुष्पाद पशु। णं-वाक्यालंकारार्थक है। सणाहा य-सनाथजिसका कोई स्वामी हो।अणाहा य-और अनाथ-जिस का कोई स्वामी न हो, पशु जैसे कि-णगरगावीओ य-नगर की गायें। णगरबलीवदा य-नगर के बैल। णगरपड्डियाओ य-नगर की छोटी गायें या भैंसें, पंजाबी भाषा में पड्डिका का अर्थ होता है-कट्टियें या बच्छियें।णगर-वसभा-नगर के सांड। पउरतणपाणियाजिन्हें प्रचुर घास और पानी मिलता था। निब्भया-भय से रहित। निरुवसग्गा-उपसर्ग से रहित / सुहंसुहेणंसुख-पूर्वक। परिवसंति-निवास करते थे। मूलार्थ-हे गौतम ! उस पुरुष के पूर्व-भव का वृत्तान्त इस प्रकार है-उस काल तथा उस समय में इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत भारत वर्ष में हस्तिनापुर नामक एक समृद्धिशाली नगर था। उस नगर में सुनन्द नाम का राजा था जो कि महाहिमवन्तहिमालय पर्वत के समान पुरुषों में महान था। उस हस्तिनापुर नामक नगर के लगभग मध्य प्रदेश में सैंकड़ों स्तम्भों से निर्मित प्रासादीय (मन में प्रसन्नता पैदा करने वाला, दर्शनीय जिसे बारम्बार देखने पर भी आँखें न थकें), अभिरूप (एक बार देखने पर भी जिसे पुनः देखने की इच्छा बनी रहे) और प्रतिरूप (जब भी देखा जाए तब ही वहां नवीनता प्रतिभासित हो) एक महान गोमंडप (गौशाला) था, वहां पर नगर के अनेक सनाथ और अनाथ पशु अर्थात् नागरिक गौएं, नागरिक बैल, नगर की छोटी-छोटी बछड़ियें अथवा कट्टिएं एवं सांड सुख पूर्वक रहते थे। उन को वहां घास और पानी आदि प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय [265
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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