SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 257
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्पीडितशरासनपट्टिकान् , पिनद्धौवेयकान् , विमल-वर-बद्ध-चिन्ह-पट्टान्, गृहीतायुधप्रहरणान्, तेषां च पुरुषाणां मध्यगतमेकं पुरुषं पश्यति, अवकोटकबन्धनम्, उत्कृत्तकर्णनासं, स्नेहस्नेहितगात्रम् वध्यकरकटियुगनिवसितं, कंठे गुणरक्तमाल्यदामानं, चूर्णगुण्डितगात्रम्. सत्रस्तं, वध्यप्राणप्रियम् बाह्यप्राणप्रियम्) तिलंतिलं चैव च्छिद्यमानम्, काकणीमांसानि खाद्यमानम्, पापं, कर्कशतैर्हन्यमानम् , अनेकनरनारी-संपरिवृतं चत्वरे चत्वरे खण्डपटहेनोद्घोष्यमाणम्, इदं चैतद्प मुद्घोषणं शृणोति नो खलु देवानुप्रिया! उज्झितकस्य दारकस्य कश्चिद् राजा वा राजपुत्रो वाऽऽपराध्यति, आत्मनस्तस्य स्वकानि कर्माण्यपराध्यन्ति। ___ पदार्थ-तत्थ णं-वहां पर। बहवे-अनेक। हत्थी-हाथियों को। पासति-देखते हैं जो कि। सन्नद्धबद्ध-वम्मियगुडिते-युद्ध के लिए उद्यत हैं, जिन्हें कवच पहनाए हुए हैं तथा जिन्होंने शरीर रक्षक उपकरण [झूला] आदि धारण किए हुए हैं। उप्पीलिय-कच्छे-दृढ़ उरोबन्धन-उदरबन्धन से युक्त हैं। उद्दामियघंटे-जिन के दोनों ओर घण्टे लटक रहे हैं। णाणामणिरयणविविहगेविजउत्तरकंचुइजे-नाना प्रकार के मणि, रत्न, विविध-भांति के ग्रैवेयक-ग्रीवा के भूषण तथा बख्तर विशेष से युक्त। पडिकप्पितेपरिकल्पित विभूषित अर्थात् कवचादि पूर्ण सामग्री से युक्त / झयपडागवरपंचामेल-आरूढहत्थारोहेध्वज और पताकाओं से सुशोभित, पंच शिरोभूषणों से युक्त, तथा हस्त्यारोहों-हाथीवानों-हाथी को हांकने वालों से युक्त, अर्थात् उन पर महावत बैठे हुए हैं। गहियाउहपहर॑णे-आयुध और प्रहरण ग्रहण किए हुए हैं अर्थात्-इन हाथियों पर आयुध (वह शस्त्र जो फैंका नहीं जाता, तलवार आदि) तथा प्रहरण (वह शस्त्र जो फैंका जा सकता है तीर आदि) लदे हुए हैं अथवा उन हाथियों पर बैठे हुए महावतों ने आयुधों और प्रहरणों को धारण किया हुआ है। अण्णे य-और भी। तत्थ-वहां पर / बहवे-बहुत से। आसे-अश्वोंघोड़ों को। पासति-देखते हैं जो कि। सन्नद्धबद्धवम्मियगुडिते-युद्ध के लिए उद्यत हैं, जिन्हें कवच पहनाये गए हैं, तथा जिन्हें शारीरिक रक्षा के उपकरण पहनाए गए हैं। आविद्धगुडे-सोने-चांदी की बनी हुई झूल से युक्त। ओसारियपक्खरे-लटकाए हुए तनुत्राण से युक्त / उत्तरकंचुइयओचूलमुहचंडाधरचामर-थासक-परिमंडियकडीए-बख्तर विशेष से युक्त, लगाम से अन्वित मुख वाले, क्रोध पूर्ण अधरों से युक्त, तथा चामर, स्थासक (आभरण विशेष) से परिमंडित-विभूषित हैं कटि-भाग जिनका ऐसे। आरूढअस्सारोहे-जिन पर अश्वारोही-घुड़सवार आरुढ हो रहे हैं। गहियाउहपहरणे-आयुध और प्रहरण ग्रहण किए हुए हैं अर्थात् उन घोड़ों पर आयुध और प्रहरण लादे हुए हैं अथवा उन पर बैठने वाले घुड़सवारों ने आयुधों और प्रहरणों को धारण किया हुआ है। अण्णे य- और भी। तत्थ णं-वहां पर। पुरिसे-पुरुषों को। पासति-देखते हैं जोकि / सन्नद्धबद्धवम्मियकवए-कवच को धारण किए हुए हैं जो कवच दृढ़ बन्धनों से बन्धे हुए एवं लोहमय कसूलकादि से युक्त हैं / उप्पीलियसरासणपट्टीए-जिन्होंने शरासनपट्टिका-धनुष बैंचने के समय हाथ की रक्षा के लिए बांधा जाने वाला चर्मपट्ट-चमड़े की पट्टी कस कर बांधी हुई है। पिणद्धगेविजे-जिन्होंने ग्रैवेयक-कण्ठाभरण धारण किए हुए हैं। विमलवरबद्धचिंधपट्टे 248 ] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy