________________ झोली को ग्रहण कर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी की सेवा में उपस्थित होकर वन्दना नमस्कार करने के पश्चात् निवेदन करते हैं कि भगवन् ! आप की आज्ञा हो तो मैं बेले के पारणे के निमित्त भिक्षार्थ वाणिजग्राम में जाना चाहता हूं? प्रभु के "-जैसा तुमको सुख हो करो परन्तु विलम्ब मत करो-" ऐसा कहने पर वे-गौतम स्वामी भगवान् के पास से चल कर ईर्यासमिति का पालन करते हुए वाणिजग्राम में पहुंच जाते हैं, वहां साधु वृत्ति के अनुसार धनी-निर्धन आदि सभी घरों में भ्रमण करते हुए राजमार्ग में पधार जाते हैं। - वहां पहुंचने पर गौतम स्वामी ने जो कुछ देखा अब सूत्रकार उस का वर्णन करते हैं मूल-तत्थ णं बहवे हत्थी पासति, सन्नद्धबद्धवम्मियगुडिते, उप्पीलियकच्छे, उद्दामियघंटे,णाणामणिरयणविविहगेविजउत्तरकंचुइज्जे, पडिकप्पिते, झयपडागवरपंचामेल-आरूढहत्थारोहे गहियाउहपहरणे।अण्णे य तत्थ बहवे आसे पासति, सन्नद्धबद्धवम्मियगुडिते, आविद्धगुडे, ओसारियपक्खारे, उत्तरकंचुड्य-ओचूलमुहचंडाधर-चामरथासकपरिमंडियकडीए, आरूढअस्सारोहे, गहियाउहपहरणे। अण्णे य तत्थ बहवे पुरिसे पासति, सन्नद्धबद्धवम्मियकवए, उप्पीलियसरासणपट्टीए, पिणद्धगेवेज्जे, विमलवरबद्धचिंधपट्टे, गहियाउहपहरणे। तेसिंचणं पुरिसाणं मझगयं एगं पुरिसं पासति अवओडगबंधणं उक्कित्तकण्णनासं, नेहत्तुप्पियगत्तं, वज्झकरकडिजुयनियत्थं, कंठे गुणरत्तमल्लदामं, चुण्णगुंडियगत्तं, बुण्णयं, वज्झपाणपीयं, तिलंतिलं चेव छिज्जमाणं, काकणिमंसाइं खावियंतं पावं, कक्करसएहिं हम्ममाणं, अणेगनरनारिसंपरिवुडं, चच्चरे चच्चरे खंडपडहएणं उग्घोसिज्जमाणं इमं च णं एयारूवं उग्घोसणं सुणेति-नो खलु देवाणुप्पिया! उज्झियगस्स दारगस्स केई राया वा राय-पुत्ते वा अवरज्झति, अप्पणो से सयाई कम्माइं अवरझंति। ' छाया-तत्र बहून् हस्तिनः पश्यति सन्नद्धबद्धवर्मिकगुडितान्, उत्पीडितकक्षान्, उद्दामितघंटान्, नानामणिरत्नविविधौवेयकोत्तरकंचुकितान्, प्रतिकल्पितान् , ध्वजपताकावरपंचापीडाऽऽरूढ़हस्त्यारोहान् , गृहीतायुधप्रहरणान् , अन्यांश्च तत्र बहूनश्वान् पश्यति, सनद्धबद्धवर्मिकगुडितान्, आविद्धगुडान् ,अवसारितपक्खरान् उत्तरकंचुकिताऽवचूलकमुखचंडाधर-चामरस्थासकपरिमंडितकटिकान् , आरुढ़ाश्वारोहान् , गृहीतायुधप्रहरणान्। अन्यां च तत्र बहून् पुरुषान् पश्यति सन्नद्धबद्धवर्मितकवचान् प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय [247