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________________ जिन्होंने उत्तम तथा निर्मल चिन्हपट्ट-निशानी रूप वस्त्र खंड धारण किए हुए हैं। गहियाउहपहरणेजिन्होंने आयुध और प्रहरण ग्रहण किए हुए हैं ऐसे पुरुषों को देखते हैं। तेसिंचणं-उन। पुरिसाणं-पुरुषों के। मझगयं-मध्यगत। एगं-एक। पुरिसं-पुरुष को। पासति-देखते हैं, अवओडगबंधणं-गले और दोनों हाथों को मोड़ कर पृष्ठभाग में जिस के दोनों हाथ रस्सी से बान्धे हुए हैं। उक्कित्तकण्णनासंजिस के कान और नाक कटे हुए हैं। नेहत्तुप्पियगत्तं-जिस का शरीर घृत से स्निग्ध किया हुआ है। वज्झकरकडिजुयनियत्थं-जिस के कर और कटिप्रदेश में वध्यपुरुषोचित वस्त्र-युग्म धारण किया हुआ है। अथवा बन्धे हुए हाथ जिस के कडियुग (हथकड़ियों) पर रखे हुए हैं अर्थात् जिस के दोनों हाथों में हथकड़ियां पड़ी हुई हैं। कंठेगुणरत्तमल्लदाम-जिस के कण्ठ में कण्ठसूत्र-धागे के समान लाल पुष्पों की माला है। चुण्णगुंडियगत्तं-जिस का शरीर गेरू के चूर्ण से पोता हुआ है। बुण्णयं-जो कि भय से त्रास को प्राप्त हो रहा है। वज्झपाणपीयं-जिसे प्राण प्रिय हो रहे हैं अर्थात् जो जीवन का इच्छुक है। तिल-तिलं चेव छिज्जमाणं-जिस को तिल तिल कर के काटा जा रहा है। काकणीमंसाइं खावियंतंजिसे शरीर के छोटे-छोटे मांस के टुकड़े खिलाए जा रहे हैं अथवा जिस के मांस के छोटे-छोटे टुकड़े काक आदि पक्षियों के खाने योग्य हो रहे हैं। पावं-पापी-पापात्मा। कक्करसएहि-सैंकड़ो पत्थरों से अथवा सैंकड़ों चाबुकों से। हम्ममाणं-मारा जा रहा है। अणेगनरनारीसंपरिवुडं-जो अनेक स्त्री-पुरुषों से घिरा हुआ है। चच्चरे चच्चरे-प्रत्येक चत्वर [जहां पर चार से अधिक रास्ते मिलते हैं उसे चत्वर कहते हैं] में। खंडपडहएणं-फूटे हुए ढोल से। उग्घोसिज्जमाणं-उद्घोषित किया जा रहा है। वहां पर / इमंच णं एयारूवं-इस प्रकार की। उग्घोसणं-उद्घोषणा को। सुणेति-सुनते हैं। एवं खलु देवाणुप्पिया!इस प्रकार निश्चय ही हे महानुभावो! उझियगस्स दारगस्स- उज्झितक नामक बालक का। केईकिसी। राया वा-राजा अथवा। रायपुत्ते वा-राजपुत्र ने। नो अवरज्झति-अपराध नहीं किया किन्तु। सेउस के। सयाइं-कम्माइं-अपने ही कर्मों का। अवरझंति-अपराध-दोष है। __मूलार्थ-वहाँ राजमार्ग में भगवान् गौतम स्वामी ने अनेक हाथियों को देखा, जो कि युद्ध के लिए उद्यत थे, जिन्हें कवच पहनाए हुए थे और जो शरीररक्षक उपकरणझूल आदि से युक्त थे अथवा जिन के उदर-पेट दृढ़ बन्धन से बान्धे हुए थे। जिनके झूले के दोनों ओर बड़े-बड़े घण्टे लटक रहे थे एवं जो मणियों और रत्नों से जड़े हुए ग्रैवेयक (कण्ठाभूषण) पहने हुए थे तथा जो उत्तरकंचुक नामक तनुत्राण विशेष एवं अन्य कवचादि सामग्री धारण किए हुए थे। जो ध्वजा, पताका तथा पंचविध शिरोभूषणों से विभूषित थे। एवं जिन पर आयुध और प्रहरणादि लदे हुए थे। इसी भांति वहां पर अनेक अश्वों को देखा, जो कि युद्ध के लिए उद्यत तथा जिन्हें . कवच पहनाए हुए थे, और जिन्हें शारीरिक उपकरण धारण कराए हुए थे। जिनके शरीर . 1. हाथी के शिर के पांच आभूषण बताए गए हैं जैसे कि-तीन ध्वजाएं और उन के बीच में दो पताकाएं। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय [249
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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