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________________ इन में निर्बल और सबल जातियों के कौन से भूत होते हैं, इन को वश में करने की क्या रीति होती है, कौन से मन्त्र तथा तन्त्रों के आगे इन की शक्तियां काम नहीं कर पातीं। उन्हें कैसे, कहां, कब और कितने समय तक सिद्ध करना पड़ता है, इत्यादि बातों का ज्ञान इस कला द्वारा सिखाया जाता है। (64) मन्त्रविधि-कला-मन्त्रों के जप जाप की कौन सी विधि है, कौन मन्त्र, कब, कहां, कैसे और कितने जप-जाप के पश्चात् सिद्ध होता है, जाप से जब वे सिद्ध हो जाते हैं, तब सम्पूर्ण ऐहिक इच्छाओं की पूर्ति कैसे होती है, उन से दैहिक, दैविक, और भौतिक बाधाएं निर्मूल कैसे की जाती हैं, इत्यादि बातों का ज्ञान इस कला द्वारा कराया जाता है। (65) यन्त्रविधि-कला-मुख से मन्त्रों का उच्चारण करते हुए किसी धातु के पत्रों या भोजपत्र या साधारण कागज़ या दीवार आदि पर नियमित खाने बनाना और उन में परिमित अंकों का भरना यन्त्र का लिखना कहलाता है। यह यन्त्र कब लिखे जाते हैं, मनोरथों के भेद से ये मुख्यतया कितने प्रकार के होते हैं, इत्यादि बातों का ज्ञान इस कला के द्वारा किया जाता (६६)तन्त्रविधि-कला-तरह-तरह के टोने करना, उतारे करना और विधान के साथ उन्हें बस्तियों के चौरास्तों पर रखना, झूठी पतलों की भोजन के पश्चात् कील को खोलना, धान की मुट्ठी आदि उतार कर किसी के सिरहाने रखना आदि-आदि कामों की विधियां इस कला के द्वारा लोगों को बताई जाती हैं। कलाकारों का कहना है कि इस कला के द्वारा कई प्रकार की दैहिक, दैविक और भौतिक बाधाएं आसानी के साथ निर्मूल की जा सकती हैं। (67) रूप-पाक-विधि-कला-अपने रूप को निखारने के लिए ऋतु, काल, देश की प्रकृति और अपनी प्रकृति का मेल मिला कर कौन-कौन पाकों का सेवन करते रहना चाहिए, ये पाक कैसे और कौन-कौन से पदार्थों के कितने-कितने परिमाण से बनते हैं, इत्यादि बातों का ज्ञान इस कला से लोगों को कराया जाता है। (६८)सुवर्ण-पाक-विधि-कला-इस कला के द्वारा पुरुष अनेक विधियों से नानाविध सुवर्ण के पाकों का निर्माण सीखा करते थे। इस में प्रथम विधिपूर्वक सोने को शोधना, फिर उस के नियमित परिमाण के साथ अन्यान्य आवश्यक पदार्थों तथा जड़ी बूटियों को मिलाकर पाक तैयार करना, तदनन्तर उस का विधि के अनुसार सेवन करना, इत्यादि बातें भी इस कला में बताई जाती हैं। (69) बन्धन-कला-किसी पर मन्त्र और दृष्टि आदि के बल से ऐसा प्रभाव 236 ] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय * [ प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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