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________________ महानदी के। खलीणमट्टियं-किनारे पर स्थित मृत्तिका-मिट्टी का। खणमाणे-खनन करता हुआ,उखाड़ता हुआ। तड़ीए-किनारे के गिर जाने पर। पेल्लित्ते समाणे-पीड़ित होता हुआ। कालगते-मृत्यु को प्राप्त होगा। मृत्यु प्राप्त करने के अनन्तर / तत्थेव-उसी। सुपइट्ठपुरे-सुप्रतिष्ठ पुर नामक / णगरे-नगर में। सिट्टिकुलंसि-श्रेष्ठि के कुल में। पुत्तत्ताए-पुत्ररूप से। पच्चायाइस्सति-उत्पन्न होगा। तत्थ णं-वहां पर। उम्मुक्कल-बाल भाव का परित्याग कर। जाव-यावत्। जोव्वणमणुप्पत्ते-युवावस्था को प्राप्त हुआ। से-वह। तहारूवाणं-तथारूप-साधु जनोचित गुणों को धारण करने वाले। थेराणं-स्थविर वृद्ध जैन साधुओं के। अंतिए-पास। धम्म-धर्म को। सोच्चा-सुनकर। निसम्म-मनन कर / मुंडे भवित्ता- मुंडित होकर / अगाराओ-अगार से। अणगारियं-अनगार धर्म को। पव्वइस्सति-ग्रहण करेगा। तत्थ-वहां पर। सेणं-वह / अणगारे-अनगार साधु। इरियासमिते-ईर्यासमिति से युक्त / जाव-यावत्। बंभयारी-ब्रह्मचारी। भविस्सति-होगा। से णं-वह। तत्थ-उस अनगार धर्म में। बहूइं वासाइं-बहुत वर्षों तक। सामण्णपरियागं-यथाविधि साधुवृत्ति का / पाउणित्ता-पालन करके।आलोइयपडिक्कंते-आलोचना तथा प्रतिक्रमण कर। समाहिपत्ते-समाधि को प्राप्त होता हुआ। कालमासे-काल मास में। कालं किच्चा-काल करके। सोहम्मे कप्पे-सौधर्म नामक प्रथम देवलोक में। देवत्ताए-देवरूप से। उववजिहिति-उत्पन्न होगा। ततो णं-तत् पश्चात् / से-वह / अणंतरं-अन्तर रहित / चयं-शरीर को। चइत्ता-छोड़ कर-देवलोक से च्यवकर। महाविदेहे वासे-महाविदेह क्षेत्र में / जाइं-जो। अड्ढाइं-आढ्य-सम्पन्न। कुलाइं-कुल। भवंति-होते हैं, उन में उत्पन्न होगा। जहा-जैसे। दढपतिण्णे-दृढ़प्रतिज्ञ था। सा चेव-वही। वत्तव्वया-वक्तव्यताकथन। कलाओ-कलाएं सीखेगा। जाव-यावत्। सिज्झिहिति-सिद्ध पद को प्राप्त करेगा अर्थात् मुक्त हो जाएगा। एवं खलु जंबू !-जम्बू ! इस प्रकार निश्चय ही। जाव-यावत्। सम्पत्तेणं-मोक्ष सम्प्राप्त। समणेणं-श्रमण। भगवया-भगवान् / महावीरेणं-महावीर ने। दुहविवागाणं-दुःख विपाक के। पढमस्सप्रथम। अज्झयणस्स-अध्ययन का। अयमढे-यह पूर्वोक्त अर्थ। पण्णत्ते प्रतिपादन किया है। त्ति-इस प्रकार / बेमि-मैं कहता हूं। पढम-प्रथम। अज्झयणं-अध्ययन / समत्तं-समाप्त हुआ। मूलार्थ-गौतम स्वामी के प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान् ने कहा कि-हे गौतम्! . यह मृगापुत्र 26 वर्ष की पूर्ण आयु भोग कर काल-मास में काल करके इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत भारत वर्ष के वैताढ्य पर्वत की तलहटी में सिंह रूप से सिंहकुल में जन्म लेगा, अर्थात् यह वहां सिंह बनेगा, जोकि महा अधर्मी और साहसी बन कर अधिक से अधिक पाप कर्मों का उपार्जन करेगा। फिर वह सिंह समय आने पर काल करके इस रत्नप्रभा नाम की पृथ्वी-पहली नरक में -जिसकी उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपम की है, उस में उत्पन्न होगा, फिर वह वहां से निकल कर सीधा भुजाओं के बल से चलने वाले अथवा पेट के बल चलने वाले जीवों की योनि में उत्पन्न होगा। वहां से काल कर के दूसरी पृथ्वी-दूसरी नरक-जिसकी उत्कृष्ट स्थिति तीन सागरोपम की है-में उत्पन्न होगा। वहां से निकल कर सीधा पक्षियोनि में उत्पन्न होगा, वहां पर काल करके तीसरी नरक भूमि-जिसकी उत्कृष्ट स्थिति सात सागरोपम की है, में उत्पन्न प्रथम श्रुतस्कंध ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [207
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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