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________________ तीन सागरोपम की स्थिति होगी। ततो णं-वहां से। उव्वट्टित्ता-निकलकर। अणंतरं-व्यवधान रहितसीधा ही। पक्खीसु-पक्षियों में। उववजिहिति-उत्पन्न होगा। तत्थ वि-वहां पर भी। कालं किंच्चाकाल करके। सत्तसागरो०-सप्त सागरोपम स्थिति वाली। तच्चाए-तीसरी। पुढवीए-नरक में उत्पन्न होगा। ततो-वहां से। सीहेसु-सिंह-योनि में उत्पन्न होगा। तयाणंतरं-उसके अनन्तर। चउत्थीए-चतुर्थ नरक में उत्पन्न होगा, वहां से निकल कर। उरगो-सर्प होगा, वहां से मर करके। पंचमीए-पांचवीं नरक में उत्पन्न होगा, वहां से निकल कर। इत्थी-स्त्री-रूप में जन्म लेगा, वहां से काल करके। छट्टीए-छठे नरक में उत्पन्न होगा, वहां से निकल कर। मणुओ- पुरुष बनेगा, वहां पर काल करके। अहे सत्तमाएसबसे नीची सातवीं नरक में उत्पन्न होगा। ततो-वहां से। उव्वट्टित्ता-निकल कर। अणंतरं-अन्तरव्यवधान रहित।से-वह / जाइंइमाइं-जो यह / जलयर-जलचर-जल में रहने वाले।पंचिंदिय-पञ्चेन्द्रियपांच इन्द्रियों वाले जीव जिन के आंख, कान, नाक, जिव्हा-रसना और स्पर्श ये पांच इन्द्रियां हैं, ऐसे। तिरिक्खजोणियाणं-तिर्यग् योनि वाले। मच्छ-मत्स्य। कच्छभ-कच्छप कछुआ। गाह-ग्राह-नाका। मगर-मगरमच्छ।सुंसुमारादीणं-सुंसुमार आदि की।अद्धतेरसजातिकुल-कोडी-जोणिपमुहसयसहस्साइंजाति-जलचरपंचेन्द्रिय की योनियां (उत्पत्तिस्थान) ही प्रमुख-उत्पत्तिस्थान हैं जिनके ऐसी जो कुलकोटियां (कुल-जीवसमूह, कोटि प्रकार) हैं उन की संख्या साढ़े बारह लाख है। तत्थ णं- उन में से। एगमेगंसि-एक एक। जोणीविहाणंसि-योनिविधान में-योनि भेद में! अणेगसयसहस्सक्खुत्तो-लाखों बार। उद्दाइत्तार-उत्पन्न हो कर। तत्थेव-वहीं पर। भुजो २-पुनः पुनः-बार बार। पच्चायाइस्सतिउत्पन्न होगा अर्थात जन्म-मरण करता रहेगा। ततो णं- वहां से। स-वह। उव्वद्वित्ता-निकल कर। चउप्पएसु-चतुष्पदों-चौपायों में। एवं-इसी प्रकार। उरपरिसप्पेसु-छाती के बल चलने वालों मे। भुयपरिसप्पेसु-भुजा के बल चलने वालों में तथा। खहयरेसु-आकाश में उड़ने वालों में। चउरिदिएसुचार इन्द्रिय वालों में। तेइंदिएसु-तीन इन्द्रिय वालों में। बेइन्दिएसु-दो इन्द्रिय वालों में। वणप्फइवनस्पति सम्बन्धी। कडुयरुक्खेसु-कटु-कड़वे वृक्षों में। कडुयदुद्धिएसु-कटु दुग्ध वाले अर्कादि वनस्पतियों में। वाउ०-वायु-काय में। तेउ-तेजस्काय में। आउ०-अप्काय मे। पुढवी-पृथ्वी काय में। अणेगसयसहक्खुत्तो-लाखों बार जन्म-मरण करेगा।ततोणं-वहां से। उव्वट्टित्ता-निकल कर।अणंतरंव्यवधान रहित। से-वह। सुपतिट्ठपुरे-सुप्रतिष्ठपुर नामक। णगरे-नगर में / गोणत्ताए-वृषभ के रूप में। पच्चायाहिति-उत्पन्न होगा। तत्थ णं-वहां पर। उम्मुक्कबालभावे-त्याग दिया है बालभाव, बाल्य अवस्था को जिसने अर्थात् युवावस्था को प्राप्त होने पर / से-वह / अण्णया कयाती-किसी अन्य समय। पढमपाउसंसि-प्रथम वर्षा ऋतु में अर्थात् वर्षर्तु के आरम्भ काल में। गंगाए-गंगा नामक / महाणदीए जिस का प्रस्तुत प्रकरण में वर्णन चल रहा है। यहां लिखा है कि सिंह के रूप में आया हुआ मृगापुत्र का जीव आयु पूर्ण करके सरीसृपों की योनि में उत्पन्न हुआ, परन्तु प्रज्ञापनासूत्र के मतानुसार सरीसृप शब्द से सर्पादि और नकुलादि दोनों का बोध होता है, यहाँ प्रकृत में दोनों में किस का ग्रहण किया जाए यह विचारणीय है। ___ अभिधान राजेन्द्र कोष में "- सरीसृपः गोधादिषु भुजोरुभ्यां सर्पणशीलेषु तिर्यक्षु-" (पृष्ठ 560) ऐसा लिखा है, जो सरीसृप और परिसर्प को पर्यायवाची होने की ओर संकेत करता है। 206 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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