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________________ ततः सा मृगादेवी तं हुण्डमन्धं पश्यति दृष्ट्वा भीता 4 मां शब्दयति शब्दयित्वा एवमवदत्गच्छ त्वं देवानुप्रिये ! एतं दारकं एकान्ते अशुचिराशौ उज्झ? तत् सन्दिशत स्वामिन् ! तं दारकं अहमेकान्ते उज्झामि उताहो मा ? पदार्थ-तते णं-तदनन्तर / अण्णया कयाती-अन्य किसी समय। सा मियादेवी-उस मृगादेवी ने। नवण्हं मासाणं-नव मास। पडिपुण्णाणं-परिपूर्ण होने पर। दारगं-बालक को। पयाया-जन्म दिया जोकि- / जातिअंधं-जन्म से अन्धा। जाव-यावत्। आगितिमित्तं-आकृति मात्र था। तते णं-तदनन्तर / सा मियादेवी-वह मृगादेवी। तं-उस। हुंडं-अव्यवस्थित अंगों वाले। जातिअंध-जन्म से अंधे। दारयंबालक को। पासति-देखती है। २त्ता-देखकर। भीया ४-भय को प्राप्त हुई, त्रास को प्राप्त हुई, उद्विग्नता एवं व्याकुलता को प्राप्त हुई, और भयातिरेक से उस का शरीर काम्पने लग पड़ा। अम्मधाति-धाय माता को। सद्दावेति-बुलाती है। रत्ता-बुलाकर। एवं वयासी-इस प्रकार कहने लगी। देवा-!-हे देवानुप्रिये!तुम-तुम। गच्छह णं-जाओ। एयं दारगं-इस बालक को। एगंते-एकान्त में। उक्कुरुडियाए-कूड़ाकचरा डालने की जगह पर। उज्झाहि-फैंक दो। तते णं-तदनन्तर। सा-वह / अम्मधाती-धाय माता। मियाए देवीए-मृगादेवी के। एतमटुं-इस अर्थ-प्रयोजन को। तहत्ति-तथास्तु-बहुत अच्छा, इस प्रकार कह कर। पडिसुणेति-स्वीकार करती है। रत्ता-स्वीकार करके। जेणेव-जहां पर। विजए खत्तिएविजय क्षत्रिय था। तेणेव-वहां पर। उवागच्छति २त्ता-आती है, आकर। करयलपरिग्गहियं-दोनों हाथ जोड़ कर। एवं वयासी-इस प्रकार बोली। एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। सामी !-हे स्वामिन् ! मियादेवी-मृगादेवी ने। नवण्हं-नौ मास पूरे होने पर जन्मान्ध / जाव-यावत् / आगितिमित्तं-आकृति मात्र बालक को जन्म दिया है। तते णं-तदनन्तर। सा मियादेवी-वह मृगादेवी। तं-उस। हुंडं-विकृतांग-भद्दी आकृति वाले। अंध-अन्धे बालक को। पासति 2 त्ता-देखती है, देखकर / भीया-भयभीत हुई। ममं-मेरे को। सद्दावेति 2 त्ता-बुलाती है बुलाकर। एवं वयासी-वह इस प्रकार कहने लगी। देवा.! -हे देवानुप्रिये ! तुम-तुम। गच्छह णं-जाओ। एयं दारगं-इस बालक को। एगते- एकान्त में ले जाकर। उक्कुरुडियाए-कूड़े कचरे के ढेर पर। उज्झाहि-फैंक दो। तं-इसलिए / सामी!-हे स्वामिन् ! संदिसह णं-आप आज्ञा दें कि क्या। अहं-मैं। तं दारगं-उस बालक को। एगंते-एकान्त में। उज्झामि-छोड़ दूंफैंक दूं। उदाहु-अथवा। मा-नहीं। मूलार्थ-तत्पश्चात् लगभग नौ मास पूर्ण होने पर मृगादेवी ने एक जन्मान्ध यावत् अवयवों की आकृति मात्र रखने वाले बालक को जन्म दिया। तदनन्तर हुंडविकृतांग तथा अन्ध रूप उस बालक को देख कर भय-भीत, त्रस्त, उद्विग्न-व्याकुल तथा भय से कांपती हुई मृगादेवी ने धायमाता को बुलाकर इस प्रकार कहा कि हे देवानुप्रिये ! तुम जाओ, इस बालक को ले जाकर एकांत में किसी कूड़े कचरे के ढेर पर फैंक आओ। तदनन्तर वह धायमाता मृगादेवी के इस कथन को तथास्तु-बहुत अच्छा, कह कर स्वीकृत करती हुई जहां पर विजय नरेश थे, वहां पर आई और हाथ जोड़ कर 196 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय - [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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