________________ अट्ठ णालीओ बाहिरप्पवहाओ अट्ठ पूयप्पवहाओ अट्ठ सोणियप्पवहाओ, दुवे दुवे कण्णंतरेसु दुवे 2 अच्छिंतरेसु दुवे 2 नक्कंतरेसु दुवे 2 धमणि-अंतरेसु अभिक्खणं 2 पूयं च सोणियं च परिस्सवमाणीओ 2 चेव चिट्ठति। तस्स णं दारगस्स गब्भगयस्स चेव अग्गिए नामं वाही पाउब्भूते। जेणं से दारए आहारेति से णं खिप्पामेव विद्धंसमागच्छति, पूयत्ताए य सोणियत्ताए य परिणमति। तं पि य से पूयं च सोणियं च आहारेति। छाया-तस्य दारकस्य गर्भगतस्यैवाष्ट नाड्योऽभ्यन्तरप्रवहाः, अष्ट नाड्यो बहिष्प्रवहाः, अष्ट पूयप्रवहाः, अष्ट शोणितप्रवहाः, द्वे द्वे कर्णान्तरयोः, द्वे 2 अक्ष्यन्तरयोः, द्वे 2 नासान्तरयोः, द्वे 2 धमन्यन्तरयोः। अभीक्ष्णं 2 पूयं च शोणितं. च परिस्रवन्त्यः परिस्रवन्त्यश्चैव तिष्ठन्ति / तस्य दारकस्य गर्भगतस्यैवाग्निको नाम व्याधिः प्रादुर्भूतः। यत् स दारक आहरति तत् क्षिप्रमेवविध्वंसमागच्छति पूयतया शोणिततया च परिणमति। तदपि च स पूयं च शोणितं चाहरति। पदार्थ-गब्भगयस्स चेव-गर्भगत ही। तस्स णं-उस। दारगस्स-बालक की। अट्ठ-आठ। . णालीओ-नाड़ियां जोकि / अब्भंतरप्पवहाओ-अन्दर बह रही हैं तथा। अट्ठ णालीओ-आठ नाड़ियां। बाहिरप्पवहाओ-बाहर की ओर बहती हैं उनमें प्रथम की। अट्ठणालीओ-आठ नाड़ियों से।पूयप्पवहाओपूय-पीब बह रही है। अट्ठ-आठ नाड़ियों से। सोणियप्पवहाओ-शोणित-रुधिर बह रहा है। दुवे २-दो दो। कण्णंतरेसु-कर्ण छिद्रों में। दुवे २-दो-दो। अच्छिंतरेसु-नेत्र छिद्रों में। दुवे 2- दो दो। नक्कंतरेसुनासिका के छिद्रों में। दुवे २-दो-दो। धमणीअंतरेसु-धमनी नामक नाड़ियों के मध्य में। अभिक्खणं 2- बार-बार। पूयं च-पूय और। सोणियं च -शोणित-रक्त का। परिस्सवमाणीओ २-परिस्राव करती हुई। चेव-समुच्चयार्थक है। चिटुंति-स्थित हैं अर्थात् पूय और शोणित को बहा रहीं हैं तथा। गब्भगयस्स चेव-गर्भगत ही। तस्स णं दारगस्स-उस बालक के शरीर में। अग्गिए णाम-अग्निक-भस्मक नाम की। वाही-व्याधि-रोग विशेष का। पाउब्भूते-प्रादुर्भाव हो गया। जेणं-जिसके कारण जो कुछ। से-वह। दारए-बालक। आहारेति-आहार करता है। से णं-वह। खिप्पामेव-शीघ्र ही। विद्धंसमागच्छति-नाश को प्राप्त हो जाता है अर्थात् जठराग्नि द्वारा पचा दिया जाता है तथा वह / पूयत्ताए य-पूयरूप में और। सोणियत्ताए य-शोणितरूप में। परिणमति-परिणमन हो जाता है-बदल जाता है तदनन्तर। से-वह बालक / तं पि य-उस। पूर्य च-पूय-का तथा। सोणियं च-शोणित-लहू का। आहारेति-आहार-भक्षण करता है। मूलार्थ-गर्भगत उस बालक के शरीर में अन्दर तथा बाहर बहने वाली आठ नाडियों में से पूय और रुधिर बहता था। इस प्रकार शरीर के भीतर और बाहर की 16 192 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय - [प्रथम श्रुतस्कंध