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________________ लेकिन पढ़ाई का जो चस्का पड़ गया था, नहीं छूटा। स्वाध्याय और संतों की संगति---अवकाश का समय वह इन्हीं कामों में लगाते। आगे चल कर ज्योतिष में उन्हें काफी दिलचस्पी हो गई थी। यह अभिरुचि शालिग्राम जी महाराज के जीवन में हमने अंत तक देखी है। ___ . माता और पिता ने विवाह के लिए तरुण शालिग्राम पर बेहद दबाव डाला, परन्तु वह टस से मस नहीं हुए। इस विषय में उन्हें साथियों ने भी काफी कुछ समझाया-बुझाया, लेकिन शालिग्राम जी ब्रह्मचर्य-पालन के अपने संकल्प से तिलमात्र भी नहीं डिगे। पीछे एक अद्भुत घटना घटी। शालिग्राम कहीं से वापस आ रहे थे। साथ में कोई नहीं था, भाई था। रास्ते में श्मशान पड़ता था। वहां संयोग से उस समय एक चिता जल रही थी। दोनों भाई चिता के करीब से गुज़र कर आगे बढ़े....... फिर एक अजीब सी अवाज़ आने लगी......सू स स स.फ फ फ फ ...... ऐसा प्रतीत हआ कि चिता के अंगारे उन दोनों का पीछा कर रहे हैं ! आगे-आगे दो तरुण पथिक और उनके पीछे चिता के अनगिनत अंगारे ! आगे-आगे जीवन और पीछे पीछे मृत्यु !! शालिग्राम इस से ज़रा भी नहीं घबराए। अपने हृदय को उन्होंने बेकाबू नहीं होने दिया। लेकिन भाई बुरी तरह डर गया था। उस के हाथ-पैर तो कांप ही रहे थे, कलेजा भी मुंह को आ रहा था। चला नहीं जाता था उस से। स्थिति बड़ी विषम हो गई थी.... . आखिर शालिग्राम जी भाई को घर उठा लाए। .: कुछ दिन बाद शालिग्राम ने अपने दूसरे भाई के मुंह पर मक्खियां भिनभिनाती देखी.... वह . समझ गए कि अब यह नहीं जीएगा। इन घटनाओं का ऐसा गहरा प्रभाव पड़ा कि शालिग्राम को अपने पार्थिव शरीर के प्रति घोर विरक्ति हो गई। अब शीघ्र से शीघ्र साधु हो जाने का संकल्प उन्होंने मन ही मन ले लिया। .. 20 वर्ष की आयु थी, समूचा जीवन सामने था। मसें भीम रहीं थीं..... यह विशाल और विलक्षण संसार उन्हें अपनी ओर चुमकार रहा था; पुचकार रहा था बार-बार। सौभाग्य से उन्हें महामहिम वयोवृद्ध श्री स्वामी जयरामदास जी महाराज की शुभ संगति प्राप्त हो गई। महाराज जी ने इस रत्न को अच्छी तरह पहचान लिया। पहुँचे हुए एक सिद्ध को एक साधक मिला। .... अन्ततोगत्वा संवत् 1946 में खरड़ (जि अम्बाला, पंजाब) में श्री शालिग्राम जी ने जैन-मुनि की दीक्षा प्राप्त की। उक्त श्री स्वामी जयराम दास जी महाराज ही आपके दीक्षागुरु हुए। तत्पश्चात् आप का अध्ययन नए सिरे से आरम्भ हुआ। थोड़े ही समय में आपने आगमों का अनुशीलन पूरा कर लिया। मन, वचन और कर्म-सभी दृष्टियों से शालिग्राम जी भगवान् महावीर की अहिंसक एवं परमार्थी सेना के एक विशिष्ट क्षमतासंपन्न श्री शालिग्राम जी म.] श्री विपाक सूत्रम् [11
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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