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________________ सैनिक बन गए। आपके अंदर सेवा-भावना तो बिल्कुल अनोखी थी। चाहे छोटी उम्र के हों, चाहे बड़ी उम्र केसभी प्रकार के साधु आप की सेवाओं के सुफल प्राप्त करते रहे। क्या रात, क्या दिन और क्या शाम, क्या सुबह....... बीमार साधुओं की परिचर्या में आपको अपने स्वास्थ्य-अस्वास्थ्य का ध्यान नहीं रहता था। ____ आचार्य श्री मोती राम जी महाराज और गणावच्छेदक श्री गणपति राय जी महाराज की सेवा में आपके जीवन का पर्याप्त काल व्यतीत हुआ। जैनधर्मदिवाकर, आचार्यप्रवर हमारे महामान्य शिक्षक एवं सद्गुरु पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज आपके ही शिष्य हुए। पूज्य आचार्य श्री को देखकर हमें प्रातःस्मरणीय श्री शालिग्राम जी महाराज के अनुपम व्यक्तित्व का कुछ आभास अनायास ही मिल जाता था। कबीर ने कहा है: निराकार की आरसी, साधो ही की देह। - लखो जो चाहे अलख को, इन में ही लखि लेह॥ मैं तो परमश्रद्धेय श्री शालिग्राम जी महाराज के ऋणों से कभी उऋण हो ही नहीं सकता। आपकी कृपा न हुई होती तो इन आँखों के होते हुए भी मैं आज अंधा ही रह जाता। त्याग और विराग के इस महामार्ग पर आप ही मुझे ले आए..... पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज "जीवित विश्वकोष" कहे जाते थे, उन का अन्तेवासित्व मुझ मंदमति को आप की ही अनुकंपा से हासिल हुआ, अन्यथा मैं आज कहां का कहां पड़ा रह जाता! महाराज जी के अंतिम दिन लुधियाना में ही बीते। कई एक रोगों के कारण आपकी अंतिम घड़ियां बड़ी कष्टमय गुज़रीं / पर महाराज की आंतरिक शांति कभी भंग नहीं हुई, मनोबल हमेशा अजेय रहा। इन का अंतिम क्षण प्रशांत धीरता का प्रतीक बनकर आज भी इन आंखों के सामने मौजूद है: नोदेति, नाऽस्तमायाति, सुखे दुःखे मुखप्रभा। यथाप्राप्ते स्थितिर्यस्य, स जीवन्मुक्त उच्यते॥ इस प्रकार आप एक जीवन्मुक्त महात्मा थे। आप का शरीरान्त संवत् 1996 में हुआ। उस समय आप की सेवा में श्रीवर्धमानस्थानकवासी श्रमणसंघ के आचार्य परमपूज्य गुरुदेव प्रातः स्मरणीय श्री आत्माराम जी महाराज और इन की शिष्यमंडली, मंत्री परमपूज्य श्री पृथ्वी चन्द जी म०, गणी श्री श्यामलाल जी म., कविरत्न श्री अमरचन्द जी म. आदि मुनिराज भी उपस्थित थे। -ज्ञान मुनि 12 ] श्री विपाक सूत्रम् [श्री शालिग्राम जी म.
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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