________________ अनुवासनाबस्ति कहते हैं अथवा अच्छे प्रकार से विरेचन होने पर उत्तम प्रकार से पथ्य करने पर शय्या में स्थापित कर के पश्चात् यह अनुवासना दी जाती है इस लिए इसको अनुवासनाबस्ति कहते हैं // 7-8 // तथा उत्कृष्ट अवयव में दी जाने वाली बस्ति की उत्तर संज्ञा है। इस वर्णन में बस्तिकर्म के भेद और उन भेदों की निर्वचन- पूर्वक व्याख्या तथा निरूह और अनुवासना में द्रव्यकृत विशेषता आदि सम्पूर्ण विषयों का भली-भांति परिचय करा दिया गया है। तथा इससे वृत्तिकार के बस्ति-सम्बन्धी निर्वचनों का भी अच्छी तरह से समर्थन हो जाता है। (12) शिरावेध-शिरा नाम नाड़ी का है उस का वेध-वेधन करना शिरावेध कहलाता है। इसी का दूसरा नाम नाड़ी वेध है। शिरावेध की प्रक्रिया का निरूपण चक्रदत्त में बहुत अच्छी तरह से किया गया है। पाठक वहीं से देख सकते हैं। (13-14) तक्षण-प्रतक्षण-साधारण कर्तन कर्म को तक्षण, और विशेष रूपेण कर्तन को प्रतक्षण कहते हैं। वृत्तिकार श्री अभयदेव सूरि के कथनानुसार क्षुर, लवित्र-चाकू आदि शस्त्रों के द्वारा त्वचा का (चमड़ी का) सामान्य कर्तन-काटना, तक्षण कहलाता है और त्वचा का सूक्ष्म विदारण अर्थात् बारीक शस्त्रों से त्वचा की पतली छाल का विदारण करना प्रतक्षण है। (१५)शिरोबस्ति-सिर में चर्मकोश देकर-बान्धकर उस में औषधि-द्रव्य-संस्कृत तैलादि को पूर्ण करना-भरना, इस प्रकार के उपचार-विशेष का नाम शिरोबस्ति है [शिरोबस्तिभिः शिरसि बद्धस्य चर्मकोशस्य द्रव्य-संस्कृत तैलाद्या पूरण लक्षणाभिरिति वृत्तिकार:] चक्रदत्त में शिरोबस्ति का विधान पाया जाता है, विस्तारभय से यहां नहीं दिया जाता। पाठक वहीं से देख सकते हैं। (16) तर्पण-स्निग्ध पदार्थों से शरीर के वृंहण अर्थात् तृप्त करने को तर्पण कहते हैं 2 / चक्रदत्त के चिकित्सा-प्रकरण में तर्पण सम्बन्धी उल्लेख पाया जाता है। पाठक वहीं से देख सकते हैं। (17) पुटपाक-अमुक रस का पुट दे कर अग्नि में पकाई हुई औषधि को पुट-पाक कहते हैं। पुटपाक का सांगोपांग वर्णन चक्रदत्त के रसायनाधिकार में किया गया है। प्राकृतशब्द-महार्णव कोश में पुटपाक के दो अर्थ किए हैं-(१) पुट नामक पात्रों से औषधि का पाक-विशेष (2) पाक से निष्पन्न औषधि-विशेष / 1. "तच्छणेहि य" त्ति क्षुरादिना त्वचस्तनूकरणैः। "पच्छणेहि यं" त्ति ह्रस्वैस्त्वचो विदारणैः। 2. तर्पणैः स्नेहादिभिः शरीरस्य बृंहणैः [वृत्तिकारः] प्रथम श्रुतस्कंध ] श्री विपाक सत्रम् / प्रथम अध्याय [183