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________________ किया गया ] और अशुभ पाप-कर्मों के पाप रूप फल को पा रह है। नरक तथा नारकी मैंने नहीं देखे। यह पुरुष-मृगापुत्र नरक के समान वेदना का प्रत्यक्ष अनुभव करता हुआ प्रतीत हो रहा है। इन विचारों से प्रभावित होते हुए भगवान् गौतम ने मृगादेवी से पूछ कर अर्थात् अब मैं जा रहा हूं ऐसा उसे सूचित कर उस के घर से प्रस्थान किया-वहां से वे चल दिए।नगर के मध्यमार्ग से चल कर जहां श्रमण भगवान् महावीर स्वामी विराजमान थे वहां पर पहुंच गए, पहुंच कर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी की दाहिनी ओर से प्रदक्षिणा कर के उन्हें वन्दना तथा नमस्कार किया, वन्दना नमस्कार करने के अनन्तर वे भगवान् से इस प्रकार बोले भगवन् ! आप श्री की आज्ञा प्राप्त कर मैंने मृगाग्राम नगर में प्रवेश किया, तदनन्तर जहां मृगादेवी का घर था मैं वहां पहुंच गया। मुझे देखकर मृगादेवी को बड़ी प्रसन्नता हुई, यावत् पूय-पीव और शोणित-रक्त का आहार करते हुए मृगापुत्र की दशा को देख कर मेरे चित्त में यह विचार उत्पन्न हुआ कि -अहह ! यह बालक महापापरूप कर्मों के फल को भोगता हुआ कितना निकृष्ट जीवन बिता रहा है। ___टीका-भोजन का समय हो चुका है, मृगापुत्र भूख से व्याकुल हो रहा होगा, जल्दी करूं, उस के लिए भोजन पहुंचाऊं, साथ में भगवान् गौतम भी उसे देख लेंगे, इस तरह से दोनों ही कार्य सध जाएंगे-इन विचारों से प्रेरित हुई महाराणी मृगादेवी ने जब पर्याप्त मात्रा में अशन (रोटी, दाल आदि) पान (पानी आदि पेय पदार्थ) आदि चारों प्रकार का आहार एक काठ की गाड़ी में भर कर मृगापुत्र के निवास स्थान पर पहुंचा दिया, तब भोजन की मधुर गन्ध से आकृष्ट (खिंचा हुआ) मृगापुत्र उस में मूर्छित (आसक्त) होता हुआ मुख द्वारा उस को ग्रहण करने लगा, खाने लगा, भूख से व्याकुल मानस को शान्त करने लगा। .कर्मों का प्रकोप देखिए-जो भोजन शरीर के पोषण का कारण बनता है, स्वास्थ्यवर्धक होता है, वही भोजन कर्म-हीन मृगापुत्र के शरीर में बड़ा विकराल एवं मानस को कम्पित करने वाला कटु परिणाम उत्पन्न कर देता है। मृगापुत्र ने भोजन किया ही था कि जठराग्नि के द्वारा उस के पच जाने पर वह तत्काल ही पाक और रक्त के रूप में परिणत हो गया। दुष्कर्मों के प्रकोप. को मानो इतने में सन्तोष नहीं हुआ, प्रत्युत वह उसे-मृगापुत्र को और अधिक विडम्बित करना चाह रहा है इसीलिए मृगापुत्र ने मानों पीव और खून का वमन किया और उस वान्त पीब एवं खून को भी वह चाटने लग गया। दूसरे शब्दों में कहें तो मृगापुत्र ने जिस आहार का सेवन किया था वह तत्काल ही पीव और रुधिर के रूप में बदल गया और साथ ही उस पाक और खून का उसने वमन किया। जैसे कुत्ता वमन को खा जाता है वैसे ही वह प्रथम श्रुतस्कंध ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [153
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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