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________________ आपुच्छति-मृगादेवी से जाने के लिए पूछते हैं। मियाए देवीए-मृगादेवी के। गिहाओ-गृह से। पडिनिक्खमति-निकलते हैं, निकल कर। मियग्गाम-मृगाग्राम / णगरं-नगर के। मज्झमझेणं-मध्य में से हो कर उस से। निग्गच्छति२-निकल पड़ते हैं, निकल कर। जेणेव-जहां पर। समणे भगवं महावीरे-श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे। तेणेव-वहीं पर / उवागच्छति-आ जाते हैं। उवागच्छित्ताआकर। समणं भगवं-श्रमण भगवान्। महावीरं-महावीर स्वामी की। आयाहिणपयाहिणं-दक्षिण की ओर से आवर्तन कर प्रदक्षिणा। करेति-करते हैं। करेत्ता-प्रदक्षिणा करने के पश्चात्। वंदति नमंसतिवन्दना तथा नमस्कार करते हैं। वंदित्ता नमंसित्ता-वंदना तथा नमस्कार करके / एवं वयासी-इस प्रकार बोले। एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। अहं-मैंने। तुब्भेहिं-आप के द्वारा। अब्भणुण्णाए समाणेअभ्यनुज्ञात होने पर। मियग्गामं णगरं-मृगाग्राम नगर के। मझमझेणं-मध्य मार्ग से हो कर, उस में। अणुपविसामि२-प्रवेश किया, प्रवेश करके / जेणेव-जहां पर। मियाए देवीए-मृगादेवी का। गिहे-घर था। तेणेव उवागते-उसी स्थान पर चला आया। तते णं-तदनन्तर / सा-वह / मियादेवी-मृगादेवी। मम एजमाणं-मुझ को आते हुए। पासति २-देखती है, देखकर। हट्ट-अत्यन्त प्रसन्न हुई और। तं चेव सव्वं-उस ने अपने सभी पुत्र दिखाए। जाव-यावत् (पूर्व वर्णित शेष वर्णन समझना)। पूयं चं सोणियं च-पूय-पीव और रुधिर का। आहारेति-उस बालक ने आहार किया। तते णं-तदनन्तर। मम-मुझे। इमे अज्झस्थिते 6- ये विचार। समुप्पज्जित्था-उत्पन्न हुए। अहो णं-अहो-आश्चर्य अथवा खेद है। इमे दारए-यह बालक। पुरा-पूर्वकृत प्राचीन कर्मों का फल भोगता हुआ। जाव-यावत्। विहरति-समय व्यतीत कर रहा है। मूलार्थ-तदनन्तर उस महान् अशन, पान, खाद्रिम, स्वादिम के गन्ध से अभिभूतआकृष्ट तथा उस में मूर्छित हुए उस मृगापुत्र ने उस महान् अशन, पान, खादिम और स्वादिम का मुख से आहार किया।और जठराग्नि से पचाया हुआ वह आहार शीघ्र ही पाक और रुधिर के रूप में परिणत-परिवर्तित हो गया और साथ ही मृगापुत्र बालक ने पाकादि में परिवर्तित उस आहार का वमन (उलटी) कर दिया, और तत्काल ही उस वान्त पदार्थ को वह चाटने लगा अर्थात् वह बालक अपने द्वारों वमन किए हुए पाक आदि को भी खा गया।बालक की इस अवस्था को देख कर भगवान् गौतम के चित्त में अनेक प्रकार की कल्पनाएं उत्पन्न होने लगीं। उन्होंने सोचा कि यह बालक पूर्व जन्मों के दुश्चीर्ण [ दुष्टता से किए गए ] दुष्प्रतिक्रान्त [ जिन के विनाश का कोई उपाय नहीं 1. भगवान् गौतम ने जो महाराणी मृगादेवी से पूछा है उसका अभिप्राय केवल महाराणी को " अब मैं जा रहा हूं" ऐसा सूचित करना है। आज्ञा प्राप्त करने के उद्देश्य से उन्होंने राणी से पृच्छा नहीं की। 2. (क)-रोटी, दाल व्यंजन, तण्डुल, चावल आदिक सामग्री अशन शब्द से विवक्षित हैं। (ख) पेय-पदार्थों का ग्रहण पान शब्द से किया गया है। (ग) दाख, पिस्ता, बादाम आदि मेवा, तथा मिठाई आदि खाने योग्य पदार्थ स्वादिम के अन्तर्गत हैं। (घ) पान, सुपारी, इलायची और लवंगादि मुखवास पदार्थ स्वादिम शब्द से गृहीत हैं। 152 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध ध्याय
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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