________________ 1 / 1 / 7 / का आंशिक पाठ अभिप्रेत है। जिस की व्याख्या इसी अध्याय के पिछले पृष्ठों पर की जा चुकी है। प्रस्तुत प्रकरण में जो संशय का अभिप्राय है वह गौतमस्वामी ने स्वयं स्पष्ट कर दिया है। कर्मों की विचित्रता से विस्मित हुए गौतमस्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से जन्मांध और जन्मांधरूप के जानने की इच्छा प्रकट की थी, उस के विषय में भगवान् ने उस का जो अनुरूप उत्तर दिया, अब सूत्रकार उस का उल्लेख करते हुए इस प्रकार कहते हैं मूल-एवं खलुगोयमा ! इहेव मियग्गामे णगरे विजयस्स पुत्ते मियादेवीए अत्तए मियाउत्ते णामं दारए जातिअंधे जातअंधारूवे णत्थि णं तस्स दारगस्स जाव आगितिमित्ते, तते णं मियादेवी जाव पडिजागरमाणी 2 विहरति। तते णं से भगवं गोतमे समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-इच्छामि णं भंते ! अहं तुब्भेहिं अब्भणुण्णाते ( समाणे) मियापुत्तं दारयं पासित्तए। अहासुहं देवाणुप्पिया ! तते णं से भगवं गोतमे समणेणं भगवया अब्भणुण्णाते समाणे हट्ठतुढे समणस्स भगवओअंतितातो पडिनिक्खमइ पडिनिक्खमित्ता अतुरियं जाव सोहेमाणे 2 जेणेव मियग्गामे णगरे तेणेव उवागच्छति। उवागच्छित्ता, मियग्गामं नगरं मझमझेणं अणुपविस्सइ। अणुप्पविस्सित्ता जेणेव मियाए देवीए गिहे तेणेव उवागच्छति। तते णं सा मियादेवी भगवं गोतमं एजमाणं पासति पासित्ता हट्ट जाव एवं वयासीसंदिसंतु णं देवाणुप्पिया ! किमागमणपयोयणं ? तते णं भगवं गोतमे मियं देविं एवं वयासी- अहण्णं देवाणुप्पिए ! तव पुत्तं पासित्तुं हव्वमागते, तते णं सा मियादेवी मियापुत्तस्स दारगस्स अणुमग्गजायए चत्तारि पुत्ते सव्वालंकारविभूसिए करेति, करेत्ता भगवतो गोतमस्स पाएसुपाडेति, पाडेत्ता एवं वयासी-एएणं भंते! मम पुत्ते पासह, तते णं से भगवं गोतमे मियं देविं एवं वयासी-नो खलु देवाणुप्पिए ! अहं एए तव पुत्ते पासिउं हव्वमागए, तत्थ णं जेसेतवजेटे पुत्ते मियापुत्ते दारए जातिअंधे जाव अन्धारूवेजण्णं तुमरहस्सियंसि भूमिघरंसि रहस्सिएणं भत्तपाणेणं पडिजागरमाणी 2 विहरसि, तं णं अहं पासिउं हव्वमागते। तते णं सा मियादेवी भगवं गोतमं एवं वयासी-से के णं प्रथम श्रुतस्कंध ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [133