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________________ गूंगा, बहरा, पंगु, हुण्ड और वातरोगी (वात रोग से पीड़ित) था। उसके हस्त, पाद, कान, नेत्र और नासिका भी नहीं थी ! केवल इन अंगोपांगों का मात्र आकार ही था और वह आकार-चिन्ह भी उचित स्वरूप वाला नहीं था।तब मृगादेवी गुप्त भूमिगृह ( मकान के नीचे का घर) में गुप्तरूप से आहारादि के द्वारा उस मृगापुत्र बालक का पालन पोषण करती हई जीवन बिता रही थी। टीका-श्री सुधर्मा स्वामी अपने प्रधान शिष्य जम्बू स्वामी के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहते हैं कि हे जम्बू! जब इस अवसर्पिणी का चौथा आरा व्यतीत हो रहा था, उस समय मृगाग्राम नाम का एक नगर था, उसके बाहर ईशान कोण में चन्दन पादप नाम का एक बड़ा ही रमणीय उद्यान था, जो कि सर्व ऋतुओं के फल पुष्पादि से सम्पन्न था। उस उद्यान में सुधर्मा . नाम के यक्ष का एक पुरातन स्थान था। मृगाग्राम नगर में विजय नाम का एक राजा था। उसकी मृगादेवी नाम की एक स्त्री थी जो कि परम सुन्दरी, भाग्यशालिनी और आदर्श पतिव्रता थी, उसके मृगापुत्र नाम का एक कुमार था, जो कि दुर्दैववशात् जन्म काल से ही सर्वेन्द्रियविकल और अंगोपांग से हीन केवल श्वास लेने वाला मांस का एक पिंड विशेष था। मृगापुत्र की माता मृगादेवी अपने उस बालक को एक भूमि-गृह में स्थापित कर उचित आहारादि के द्वारा उसका संरक्षण और पालन पोषण किया करती थी। प्रस्तुत आगम पाठ में चार स्थान पर "वण्णओ-वर्णक" पद का प्रयोग उपलब्ध होता है। प्रथम का नगर के साथ, दूसरा उद्यान के साथ, तीसरा-विजय राजा और चौथा मृगादेवी के साथ। जैनागमों की वर्णन शैली का परिशीलन करते हुए पता चलता है कि उन में उद्यान, चैत्य, नगरी, सम्राट, सम्राज्ञी तथा संयमशील साधु और साध्वी आदि का किसी एक आगम में सांगोपांग वर्णन कर देने पर दूसरे स्थान में अर्थात् दूसरे आगमों में प्रसंगवश वर्णन की आवश्यकता को देखते हुए विस्तार भय से पूरा वर्णन न करते हुए सूत्रकार उस के लिए "वण्णओ" यह सांकेतिक शब्द रख देते हैं। उदाहरणार्थ-चम्पा नगरी का सांगोपांग वर्णन औपपातिक सूत्र में किया गया है। और उसी में पूर्णभद्र नामक चैत्य का भी सविस्तर वर्णन है। विपाकश्रुत में भी चम्पा और पूर्णभद्र का उल्लेख है, यहां पर भी उन का-नगरी और चैत्य का सांगोपांग वर्णन आवश्यक है, परन्तु ऐसा करने से ग्रन्थ का कलेवर-आकार बढ़ जाने का भय है, इसलिए यहां "वण्णओ" पद का उल्लेख करके औपपातिक आदि सूत्रगत वर्णन की ओर संकेत कर दिया गया है। इसी प्रकार सर्वत्र समझ लेना चाहिए। प्रस्तुत पाठ में मृगाग्राम नामक नगर का वर्णन उसी प्रकार समझना जैसा कि औपपातिक सूत्र में चम्पा नगरी का वर्णन है, अन्तर केवल इतना ही है कि जहां चम्पा के वर्णन में स्त्रीलिंग का प्रयोग किया है वहां 122 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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