________________ केवलं तस्य तेषामंगोपांगानामाकृतिराकृतिमात्रम् / ततः सा मृगादेवी तं मृगापुत्रं दारकं राहसिके भूमिगृहे राहसिकेन भक्तपानकेन प्रतिजागरयन्ती विहरति। . पदार्थ-तेणं कालेणं-उस काल में। तेणं समएणं-उस समय में। मियग्गामे-मृगाग्राम। णाम-नामकाणगरे-नगर।होत्था-था।वण्णओ-वर्णक-वर्णन प्रकरण पूर्ववत्। तस्स-उस। मियग्गामस्समृगाग्राम नामकाणगरस्स-नगर के।बहिया-बाहिर। उत्तरपुरस्थिमे-उत्तर-पूर्व / दिसिभाए-दिग्भाग अर्थात् ईशान कोण में। चंदणपायवे-चंदनपादप। णाम-नामक। उजाणे-उद्यान। होत्था-था। सव्वोउय०-जो कि सर्व ऋतुओं में होने वाले फल पुष्पादि से युक्त था। वण्णओ-वर्णक-वर्णन प्रकरण पूर्ववत्। तत्थ णं-उस उद्यान में। सुहम्मस्स जक्खस्स-सुधर्मा नामक यक्ष का। जक्खाययणे-यक्षायतन। होत्था-था। चिरातीए-जो कि पुराना था शेषवर्णन। जहा पुण्णभद्दे-पूर्णभद्र की भांति समझ लेना। तत्थ णं-उस। मियग्गामे-मृगाग्रामीणगरे-नगर में। विजए णाम-विजय नामक।खत्तिए-क्षत्रिय। राया-राजा। परिवसतिरहता था। वण्णओ-वर्णनप्रकरण पूर्ववत्। तस्स-उस। विजयस्स-विजय नामक। खत्तियस्स-क्षत्रिय की। मिया णाम-मृगा नामक। देवी-देवी। होत्था-थी। अहीण-जिसकी पांचों इन्द्रियां सम्पूर्ण अथच निर्दोष थीं। वण्णओ-वर्णनप्रकरण पूर्ववत्। तस्स-उस। विजयस्स-विजय। खत्तियस्स-क्षत्रिय का। पुत्ते-पुत्र। मियादेवीए-मृगादेवी का। अत्तए-आत्मज / मियापुत्ते-मृगापुत्र / णाम-नमक। दारए-बालक। होत्था-था, जो कि / जातिअन्धे-जन्म से अन्धा। जातिमूए-जन्म काल से मूक-गूंगा। जाति-बहिरे-जन्म से बहरा। जातिपंगुले-जन्म से पंगुल-लूला लंगड़ा। हुण्डे य-हुंड-जिस के शारीरिक अवयव अपने अपने प्रमाण में पूरे नहीं हैं, तथा-वायवे-उसका शरीर वायुप्रधान था। तस्स दारगस्स-उस बालक के। हत्था वा-हाथ। पाया वा-पांव। कण्णा वा-कान। अच्छी वा-आंखें / नासा वा-और नाक। नत्थि णंनहीं थी। केवलं-केवल। से-उसके। तेसिं अंगोवंगाणं-उन अंगोपांगो की। आगिई-आकृति। आगितिमित्ते-आकार मात्र थी, अर्थात् उचित स्वरूप वाली नहीं थी। तते णं-तदनन्तर। सा-वह / मियादेवी-मृगादेवी। तं-उस। मियापुत्तं-मृगापुत्र / दारगं-बालक की। रहस्सियंसि-गुप्त। भूमिघरंसिभूमिगृह-भोरे में। रहस्सितेणं-गुप्तरूप से। भत्तपाणएणं-आहार-पानी के द्वारा। पडिजागरमाणी-सेवा .करती हुई। विहरति-विहरण कर रही थी। . मूलार्थ-उस काल तथा उस समय में मृगाग्राम नामक एक सुप्रसिद्ध नगर था। उस मृगाग्राम नामक नगर के बाहर उत्तर पूर्व दिशा के मध्य अर्थात् ईशान कोण में सम्पूर्ण ऋतुओं में होने वाले फल पुष्पादि से युक्त चन्दन-पादप नामक एक रमणीय उद्यान था। उस उद्यान में सुधर्मा नामक यक्ष का एक पुरातन यक्षायतन था, जिसका वर्णन पूर्णभद्र के समान जानना। उस मृगाग्राम नामक नगर में विजय नाम का एक क्षत्रिय राजा निवास करता था। उस विजय नामक क्षत्रिय राजा की मृगा नाम की रानी थी जो कि सर्वांगसुन्दरी, रूप-लावण्य से युक्त थी। उस विजय क्षत्रिय का पुत्र और मृगादेवी का आत्मज मृगापुत्र नाम का एक बालक था, जो कि जन्मकाल से ही अन्धा, प्रथम श्रुतस्कंध ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [121