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________________ यहां पर "समणेणं भगवया महावीरेणंजाव संपत्तेणं" इस वाक्य में उल्लेख किया गया "जाव-यावत्" यह पद भगवान् महावीर स्वामी के सम्बन्ध में उल्लेख किये जाने वाले अन्य विशेषणों को सूचित करता है, वे विशेषण "आइगरेणं तित्थगरेणं..." इत्यादि हैं, जो कि श्री भगवती, समवायाङ्ग आदि सूत्रों में उल्लेख किये गए हैं, पाठक वहां से देख लेवें। . प्राणी वर्ग के शुभाशुभ कर्मों के फल का प्रतिपादक शास्त्र आगम परम्परा में विपाकश्रुत के नाम से प्रसिद्ध है, और यह द्वादशांग रूप प्रवचन-पुरूष का एकादशवां अंग होने के कारण ग्यारहवें अंग के नाम से विख्यात है। इसके दुखविपाक और सुखविपाक नाम के दो श्रुतस्कंन्ध हैं। यहां प्रश्न होता है कि श्रुतस्कन्ध किसे कहते हैं? इस का उत्तर यह है कि विभाग-विशेष श्रुतस्कन्ध है, अर्थात् आगम के एक मुख्यविभाग अथवा कतिपय अध्ययनों के समुदाय का नाम श्रुतस्कन्ध है। प्रस्तुत आगम के दो श्रुतस्कन्ध हैं। पहले का नाम दुःखविपाक और दूसरे का सुखविपाक है। जिसमें अशुभकर्मों के दुखरूप विपाक-परिणामविशेष का दृष्टान्त पूर्वक वर्णन हो उसे दुःखविपाक और जिसमें शुभकर्मों के सुखरूप फल-विशेष का दृष्टान्त पूर्वक प्रतिपादन हो उसे सुखविपाक कहते हैं। भगवन् ! दुःखविपाक नामक प्रथम श्रुतस्कन्ध के कितने अध्ययन हैं ? जम्बू स्वामी के इस प्रश्न के उत्तर में श्री सुधर्मास्वामी ने उसके दश अध्ययनों को नामनिर्देशपूर्वक कह सुनाया। उन के "(1) मृगापुत्र, (2) उज्झितक, (3) अभग्नसेन, (4) शकट, (5) बृहस्पति (6) नन्दिवर्धन / (7) उम्बरदत्त, (8) शौरिकदत्त (9) देवदत्ता (10) और अजू" ये दश नाम हैं। मृगापुत्रादि का सविस्तार वर्णन तो यथास्थान आगे किया जाएगा, परन्तु संक्षेप में यहां इन का मात्र परिचय करा देना उचित प्रतीत होता है (1) मृगापुत्र - एक राजकुमार था, यह दुष्कर्म के प्रकोप से जन्मान्ध, इन्द्रियविकल, वीभत्स एवं भस्मक आदि व्याधियों से परिपीड़त था। एकादि के भव में यह एक प्रान्त का शासक था परन्तु आततायी, निर्दयी, एवं लोलुपी बन कर इसने अनेकानेक दानवीय कृत्यों से अपनी आत्मा का पतन कर डाला था, जिसके कारण इसे अनेकानेक भीषण विपत्तियां सहनी पड़ी। आज का जैन संसार इसे मृगालोढे के नाम से स्मरण करता है। (2) उज्झितक - विजयमित्र नाम के सार्थवाह का पुत्र था, गोत्रासक के भव में इसने गौ, बैल आदि पशुओं के मांसाहार एवं मदिरापान जैसे गर्हित पाप कर्मों से अपने जीवन को पतित बना लिया था, उन्हीं दुष्ट कर्मों के परिणाम में इसे दुःसह कष्टों को सहन करना पड़ा। (3) अभग्नसेन - विजय चोर सेनापति का पुत्र था। निर्णय के भव में यह अण्डों का अनार्य व्यापार किया करता था, (1) विपाक :-पुण्यपापरूपकर्मफलं तत्प्रतिपादनपरं श्रुतं-'आगमो' विपाकश्रुतम् [अभयदेव सूरिः] 118 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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