________________ (5) नन्दी (6) उम्बर: (7) शौरिकदत्तश्च (8) देवदत्ता च (9) अंजूश्च (10) / यदि भदन्त ! श्रमणेन यावत् सम्प्राप्तेन दुःखविपाकानां दशाध्ययनानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथामृगापुत्रो यावदञ्जूश्च / प्रथमस्य भदन्त ! अध्ययनस्य दुःखविपाकानां श्रमणेन यावत् संप्राप्तेन कोऽर्थः प्रज्ञप्तः ? ततः सः सुधर्माऽनगारो जम्बूमनगारमेवमवादीत्-एवं खलु जम्बूः ! पदार्थ-जति-यदि। णं-यह पद वाक्य-सौन्दर्य के लिए है, ऐसा सर्वत्र जानना। भंते !-हे भगवन् ! समणेणं जाव संपत्तेणं-यावत् मोक्ष-संप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने। पण्हावागरणाणंप्रश्न-व्याकरण। दसमस्स-दशम। अंगस्स-अंग का। अयमद्वे-यह अर्थ। पण्णत्ते-प्रतिपादन किया है। भंते ! हे भगवन् ! विवागसुयस्स-विपाकश्रुत। एक्कारसमस्स-एकादशवें। अंगस्स-अंग का। जावयावत्। संपत्तेणं-मोक्ष-संप्राप्त। समणेणं-श्रमण भगवान् महावीर ने। के-क्या। अटे-अर्थ। पण्णत्तेप्रतिपादन किया है। तते णं-तदनन्तर / अन्जसुहम्मे अणगारे-आर्य सुधर्मा अनगार ने। जम्बु अणगारंजम्बू नामक अनगार को। एवं-इस प्रकार / वयासी-कहा। जम्बू !-हे जम्बू ! खलु-निश्चय से। एवंइस प्रकार। जाव-यावत्। संपत्तेणं-मोक्षसंप्राप्त। समणेणं-श्रमण भगवान् महावीर ने। विवागसुयस्सविपाकश्रुत। एक्कारसमस्स-एकादशवें। अंगस्स-अङ्ग के। दो-दो। सुयक्खंधा-श्रुतस्कन्ध। पण्णत्ताप्रतिपादन किए हैं। तंजहा-जैसे कि। दुहविवागा य-दुःख विपाक तथा। सुहविवागा य-सुखविपाक। भंते !-हे भगवन!। जति णं-यदि। जाव-यावत्। संपत्तेणं-मोक्ष-संप्राप्त। समणेणं-श्रमण भगवान् महावीर ने। विवागसुयस्स-विपाकश्रुत नामक, एक्कारसमस्स-एकादशवें। अंगस्स-अंग के। दो-दो। सुयखंधा-श्रुतस्कन्ध। पण्णत्ता-प्रतिपादन किए हैं। तंजहा-जैसे कि / दुहविवागा य-दु:खविपाक तथा। सुहविवागा य-सुखविपाक। भंते !-हे भगवन्। पढमस्स-प्रथम। दुहविवागाणं-दुःखविपाक नामक। सुयखंधस्स-श्रुतस्कन्ध के।जाव-यावत् / संपत्तेणं-मोक्ष को प्राप्त हुए। समणेणं-श्रमण भगवान् महावीर ने। कइ-कितने। अज्झयणा-अध्ययन। पण्णत्ता-प्रतिपादन किए हैं। तते णं-तदनन्तर। अजसुहम्मे अणगारे-आर्य सुधर्मा अनगार ने। जम्बु अणगारं-जम्बू अनगार को। एवं-इस प्रकार। वयासी-कहा। जम्बू !-हे जम्बू ! खलु-निश्चय से। एवं-इस प्रकार / जाव-यावत्। संपत्तेणं-मोक्षसम्प्राप्त। समणेणंश्रमण भगवान् महावीर ने / दुहविवागाणं-दुःख विपाक के। दस-दश। अज्झयणा-अध्ययन। पण्णत्ताप्रतिपादन किए हैं। तं जहा-जैसे कि / मियाउत्ते य-मृगापुत्र / (1) उज्झियते-उज्झितक ।(२)अभग्गअभग्न। (3) सगडे-शकट। (4) बहस्सती-बृहस्पति। (5) नंदी-नन्दी। (6) उम्बर-उम्बर / (7) सोरियदत्ते य-शौरिकदत्त / (8) देवदत्ता य-देवदत्ता। (9) अंजू य-तथा अञ्जु / (10) भंते!-हे भगवन् ! जति णं-यदि / जाव-यावत्। संपत्तेणं-मोक्षसम्प्राप्त। समणेणं-श्रमण भगवान् महावीर ने। दुहविवागाणं-दुःखविपाक के। दस-दश। अज्झयणा-अध्ययन / पण्णत्ता-कथन किए हैं। तंजहाजैसे कि। मियाउत्ते-मृगापुत्र / जाव-यावत्। अंजू य-और अंजू। भंते !-हे भगवन् ! / दुहविवागाणंदुःख-विपाक के। पढमस्स-प्रथम। अज्झयणस्स-अध्ययन का। जाव-यावत्। संपत्तेणं-मोक्षसम्प्राप्त। 116 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [ प्रथम श्रुतस्कंध