________________ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के शिष्य चुतर्दश पूर्व के ज्ञाता, चार ज्ञानों के धारक, जाति-सम्पन्न [जिन की माता सम्पूर्ण गुणों से युक्त अथवा जिस का मातृ पक्ष विशुद्ध हो ] पांच सौ अनंगारों से सम्परिवृत आर्य सुधर्मा नाम के अनगार-मुनि क्रमशः विहार करते हुए पूर्णभद्र नामक चैत्य में अनगारोचित्त अवग्रह-स्थान ग्रहण कर विराजमान हो रहे हैं। धर्म कथा सुनने के लिए परिषद्-जनता नगर से निकल कर वहां आई, धर्म-कथा सुनकर उसे हृदय में मनन एवं धारण कर जिस ओर से आई थी उसी ओर चली गई। उस काल तथा उस समय में आर्य सुधर्मा स्वामी के शिष्य, जिनका शरीर सात हाथ का है, और जो गौतम स्वामी के समान मुनि-वृत्ति का पालन करने वाले तथा ध्यानरूप कोष्ठ को प्राप्त हो रहे हैं, आर्य 'जम्बू नामक अनगार विराजमान हो रहे हैं। तदनन्तर जातश्रद्धश्रद्धा से सम्पन्न आर्य श्री जम्बू स्वामी श्री सुधर्मा स्वामी के चरणों में उपस्थित हुए, . 1. जम्बू कुमार कौन थे ? इस जिज्ञासा का पूर्ण कर लेना भी उचित प्रतीत होता है। सेठ ऋषभदत्त की धर्मपत्नी का नाम धारिणी थां। दम्पती सुख पूर्वक समय व्यतीत कर रहे थे। एक बार गर्भकाल में सेठानी धारिणी ने जम्बू वृक्ष को देखा। पुत्रोत्पत्ति होने पर बालक का स्वप्नानुसारी नाम जम्बू कुमार रखा गया। जम्बू कुमार के युवक होने पर आठ सुयोग्य कन्याओं के साथ इनकी सगाई कर दी गई। उसी समय श्री सुधर्मा स्वामी के पावन उपदेशों से इन्हें वैराग्य हो गया, सांसारिकता से मन हटा कर साधु जीवन अपनाने के लिए अपने आप को तैयार कर लिया, तथापि माता-पिता के प्रेम भरे आग्रह से इन का विवाह सम्पन्न हुआ। विवाह में इन्हें करोड़ों की सम्पत्ति मिली थी। - कुमार का हृदय विवाह से पूर्व ही वैराग्यतरंगों से तरङ्गित था, जो सुधर्मा स्वामी के चरणकमलों का भ्रमर बन चुका था, इसीलिए नववधूओं के शृंगार, हावभाव इन्हें प्रभावति न कर सके और वे समस्त सुन्दरियां इन्हें अपने मोह-जाल में फंसाने में सफल न हो सकीं। प्रभव राजगृह का नामी चोर था। विवाह में उपलब्ध प्रीतिदान-दहेज को चुराने के लिये 500 शूरवीर साथियों का नेतृत्व करता हुआ वह कुमार के विशाल रमणीय भवन में आ धमका था। ताला तोड़ देने और लोगों ला देने की अपर्व विद्याओं के प्रभाव से उसे किसी बाधा का सामना नहीं करना पडा। भवन के आंगन में पड़े हुए मोहरों के ढेरों की गठरियां बांध ली गईं, और भवन से बाहर स्थित प्रभव ने साथियों को उन्हें उठा ले चलने का आदेश दिया। __कुमार प्रभव के इस कुकृत्य से अपरिचित नहीं थे, धन आदि की ममता का समूलोच्छेद कर लेने पर भी "चोरी होने से जम्बू साधु हो रहा है" इस लोकापवाद से बचने के लिए उन्होंने कुछ अलौकिक प्रयास किया। भवन के मध्यस्थ सभी चोरों के पांव भूमि से चिपक गए। शक्ति लगाने पर भी वे हिल न सके। इस विकट परिस्थिति में साथियों को फंसा सुन और देख प्रभव सन्न सा रह गया और गहरे विचार-सागर में डूब गया। प्रभव विचारने लगा-मेरी विद्या ने तो कभी ऐसा विश्वास-घात नहीं किया था, न जाने यह क्या सुन और देख रहा हूं, प्रतीत होता है यहां कोई जागता अवश्य है। ओह ! अब समझा, विद्या देते समय गुरु ने कहा था-इस का प्रभाव मात्र संसारी जीवन पर होगा। धर्मी पर यह कोई प्रभाव नहीं डाल सकेगी। संभव है यहां कोई धर्मात्मा ही हो, जिसने यह सब कुछ कर डाला है, देखू तो सही। प्रभव ऊपर जाने लगा, क्या देखता है-सौंदर्य की साक्षात् प्रतिमाएं प्रथम श्रुतस्कंध ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [97