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________________ विहरति / ततः आर्यजम्बूर्नामानगारो जातश्रद्धो यावद् यत्रैवार्यसुधर्माऽनगारस्तत्रैवोपगतः, त्रिरादक्षिण-प्रदक्षिणं करोति, कृत्वा वन्दते नमस्यति वन्दित्वा नमस्यित्वा यावत् पर्युपासते, पर्युपास्यैवमवदत्। पदार्थ-तेणं कालेणं-उस काल में। तेणं समएणं-उस समय में। चंपा णाम-चम्पा नाम की। णयरी-नगरी। होत्था-थी। वण्णओ-वर्णक-वर्णन ग्रन्थ अर्थात् नगरी का वर्णन औपपातिक सूत्र में किए गए वर्णन के समान जान लेना', उस नगरी के बाहर ईशान कोण में। पुण्णभद्दे चेइए-पूर्णभद्र नाम का एक उद्यान था। वण्णओ-वर्णक-वर्णन-ग्रन्थ पूर्ववत्। तेणं कालेणं-उस काल में। तेणं समएणंउस समय में। समणस्स भगवओ महावीरस्स-श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के। अंतेवासी-शिष्य। जाइसंपण्णे-जातिसम्पन्न / चोद्दसपुव्वी-चतुर्दश पूर्वो के ज्ञाता। चउणाणोवगए-चार ज्ञानों के धारक। वण्णओ-वर्णक पूर्ववत्। अजसुहम्मे णामं अणगारे-आर्य सुधर्मा नाम के अनगार-(अगार रहित) साधु। पंचहि अणगारसएहिं सद्धिं-पांच सौ साधुओं के साथ अर्थात्-संपरिवुडे-उन साधुओं से घिरे हुए। पुव्वाणुपुल्विं चरमाणे-क्रमशः विहार करते हुए। जाव-यावत्। पुण्णभद्दे चेइए-पूर्णभद्र चैत्य उद्यान / जेणेव-जहां पर था। अहापडिरूवं-साधु-वृत्ति के अनुरूप अवग्रह-स्थान ग्रहण करके। जावयावत्। विहरइ-विहरण कर रहे हैं। परिसा-जनता। निग्गया-निकली। धम्म-धर्म-कथा। सोच्चा-सुन करके। निसम्म-हृदय में धारण करके। जामेव दिसं पाउब्भया-जिस ओर से आई थी। तामेव दिसं पडिगया-उसी ओर चली गई। तेणं कालेणं-उस काल में। तेणं समएणं-उस समय में। अजसुहम्मस्सआर्य सुधर्मा स्वामी के। अंतेवासी-शिष्य। सत्तुस्सेहे-सात हाथ प्रमाण शरीर वाले। जहा-जिस प्रकार। गोयमसामी-गौतम स्वामी, जिन का आचार भगवती सूत्र में वर्णित है। तहा-उसी प्रकार के आचार को धारण करने वाले। जाव-यावत् / झाणकोट्ठोवगए-ध्यान रूप कोष्ठ को प्राप्त हुए। विहरति-विराजमान हो रहे हैं। तते णं-उस के पश्चात् / अजजम्बूणामं अणगारे-आर्य जम्बू नामक अनगार-मुनि। जायसड्ढेश्रद्धा से युक्त। जाव-यावत्। जेणेव-जिस स्थान पर। अजसुहम्मे अणगारे-आर्य सुधर्मा अनगार विराजमान थे। तेणेव उवागए-उसी स्थान पर पधार गए। तिक्खुत्तो-तीन बार / आयाहिणपयाहिणं-दाहिनी ओर से आरम्भ करके पुनः दाहिनी ओर तक प्रदक्षिणा को। करेति-करते हैं। करेत्ता-करके। वन्दति-वन्दना करते हैं। नमंसति-नमस्कार करते हैं। वंदित्ता नमंसित्ता-वन्दना तथा नमस्कार करके। जाव-यावत् पज्जुवासति-भक्ति करने लगे। पज्जुवासित्ता-भक्ति करके। एवं-इस प्रकार। वयासी-कहने लगे। मूलार्थ-उस काल तथा उस समय में चम्पा नाम की एक नगरी थी। चम्पा नगरी का वर्णन औपपातिक सूत्रगत वर्णन के सदृश जान लेना चाहिए। उस नगरी के बाहर ईशान कोण में पूर्णभद्र नाम का एक चैत्य-उद्यान था। उस काल और उस समय में 1. 'वण्णओ' पद से सूत्रकार का अभिप्राय वर्णन ग्रन्थ से है अर्थात् जिस प्रकार श्री औपपातिक आदि सूत्रों में नगर, चैत्य आदि का विस्तृत विवेचन किया गया है उसी प्रकार यहां पर भी नगरी आदि का वर्णन जान लेना चाहिए। 16 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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