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________________ कि दस दिनों में प्रतिपादन किये जाते हैं। इसी तरह सुखविपाक के विषय में भी जानना चाहिए अर्थात् उस के भी दश अध्ययन एक जैसे हैं और दश ही दिनों में वर्णन किए जाते हैं। शेष वर्णन आचारांग सूत्र की भाँति समझ लेना चाहिए। टीका-मंगलाचरण की शिष्ट परम्परा अत्यन्त प्राचीन है। ग्रन्थ के आरम्भ और समाप्ति के अवसर पर मंगलाचरण करना यह शिष्ट सम्मत आचार है। इसी शिष्ट प्रथा का अनुसरण करते हुए सूत्रकार ने सूत्र की समाप्ति पर-नमो सुयदेवयाए-नमः श्रुतदेवतायै-इन पदों द्वारा मंगलाचरण का निर्देश किया है। इन का अर्थ अग्रिम पंक्तियों में किया जा रहा है। किसी-किसी प्रति में यह पाठ उपलब्ध नहीं भी होता। श्री विपाकश्रुत के दुःखविपाक और सुखविपाक ये दो श्रुतस्कन्ध हैं। दुःखविपाकजिस में दुष्ट कर्मों का दुःखरूप विपाक-परिणाम कथाओं के रूप में वर्णित हो वह दुःखविपाक है। सुखविपाक-जिस में शुभ कर्मों का सुखरूप विपाक-फल का विशिष्ट व्यक्तियों के जीवन वृत्तान्तों से बोध कराया जाए उसे सुखविपाक कहते हैं। दुःखविपाक के और सुखविपाक के दस-दस अध्ययन हैं। इस प्रकार कुल बीस अध्ययनों में श्रुतविपाक नाम के ग्यारहवें अंग का संकलन हुआ है। विपाकश्रुत के पूर्वोक्त 20 अध्ययनों के अध्ययनक्रम का भी सूत्रकार ने स्वयं ही स्पष्ट उल्लेख कर दिया है। सूत्रकार का कहना है कि विपाकसूत्रगत दुःखविपाक के दस अध्ययन दस दिनों में बांचे जाते हैं और सुखविपाक के दस अध्ययन भी दुःखविपाक की भाँति दस दिनों में प्रतिपादन किये जाते हैं। ... उपसंहार में सर्वप्रथम सूत्रकार ने श्रुतदेवता को नमस्कार किया है। यह नमस्कार अभिमतग्रन्थ की निर्विघ्न समाप्ति पर किया जाता है और यह मंगल का सूचक तथा ग्रन्थ के निर्विघ्न पूर्ण हो जाने के कारण उत्पन्न हुए हर्षविशेष का परिचायक है। मनोविज्ञान का यह * सिद्धान्त है कि सफलता, सफल व्यक्ति को अपने इष्टदेव का स्मरण अवश्य कराया करती है। उसी के फलस्वरूप यह मङ्गलाचरण है। * श्रुतदेवता-यह शब्द तीर्थंकर या गणधर महाराज का बोधक है। अर्थात् इन पदों से सूत्रकार ने अर्थरूप से जैनेन्द्र वाणी के प्रदाता तीर्थंकर महाराज तथा सूत्ररूप से जैनेन्द्रवाणी के प्रदाता गणधर महाराज का स्मरण करके अपने पुनीत श्रद्धासंभार का परिचय दिया है। 1. श्रुत आगम शास्त्र को और स्कन्ध उस शास्त्र के खण्ड या विभाग को कहते हैं अर्थात् आगम या शास्त्र के खण्ड या विभाग का नाम श्रुतस्कन्ध है। इस के अपर विभाग अध्ययन के नाम से अभिहित किये जाते 2. श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा में श्रुतदेवता एक देवी मानी जाती है जो कि श्रुत की अधिष्ठात्री के रूप में इन के यहां प्रसिद्ध है। द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / उपसंहार [997
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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