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________________ [6] विभागो स्वीकार्या छे. ज्यारे प्रथम अमे स्याद्वादकल्पलता वांची त्यारे तेमा आवता प्रासंगिक सूक्तोए अमारा चित्तनुं खूब आकर्षण कयु हतुं. ते सूक्तोने जूदा तारवीने तेने सटीक करवा-अने ए द्वारा कल्पलतामा प्रवेश थाय एवो प्रयत्न करवो ए प्रमाणे विचार को हतो. ए विचारने अनुसार सूक्तोने पृथक् तारवीने ढूंक आलेखन कर्यु हतुं. पण पछीथी जे रूपे आ प्रसिद्ध थाय छे ते प्रकारर्नु लेखन व्यवस्थित करवामां. ते ते सूक्तो साथे मूळ्यन्थना उपयुक्त श्लोको अने प्रासङ्गिक दार्शनिक विचारो पण उमेर्या; एम करवाथी स्याद्वादकल्पलतामा प्रवेश करवानुं सुलभ थशे- ए स्पष्ट छे. १-स्तवक:-प्रारम्भमां ग्रन्थकार अने वृत्तिकारना माल वगेरे विषयोने वर्णवता विशद सूक्तो छे, तेमां पण ऐन्द्रश्रेणिनताय' ए कल्पलताकारनो मङ्गलश्लोक उदात्त अने प्रासादिक छे, जे कण्ठस्थ कर्या बाद वारंवार पाठ करवानुं मन थया करे एवो छे. मूळ्यन्थ मङ्गलश्लोक परनी लतामा मङ्गलवादनी विधारणा सूक्ष्म अने नवीन तर्कयुक्तियोथी भरपूर छे, केटलीक युक्तियो तो अहीज जोवा मळे छे. द्वितीय श्लोकमां मोक्षपुरुषार्थनी सिद्धि छे. शास्त्रवार्ताना-बीजा श्लोकथी 26 मा श्लोक सुधी सुन्दर उपक्रम को छ, जे उपदेशरूपे पण उपयोगी छे, तेमांथी चार श्लोक नहीं उधृत कर्या छे. __30 मा श्लोकथी चार्वाक (नास्तिक) मतनो प्रारम्भ थाय छे. चार्वाको आत्माने मानता नथी, शरीरादिमां-जे चैतन्य जणाय छे ते पृथिवी मादिना संयोगथी जन्मे छे अने ते महाभूतो विखराता चैतन्य नाश पामे छे. प्रत्यक्ष सिवाय अन्य कोई प्रमाणने चार्वाको
SR No.004491
Book TitleKalplatavatarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutsuri
PublisherJain Sahityavardhak Sabha
Publication Year1958
Total Pages322
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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