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________________ परिचय आत्मा अनन्त ज्ञानादि गुण युक्त छे, परन्तु अनादिकाळ्थी कर्मना सम्बन्धने कारणे ए जड जेवो, पराधीन, दु:खी अने अबळ भासे छे. आत्माने कोई कोई समय कर्मनुं बळ ओछं थतां निजगुणनी झाँखी थाय छे-पोताना ए विशिष्ट गुणोनो आछो अनुभव पण तेने कोई अपूर्व आनन्द उपजावे छे. एवा अनुभवोनी सरवाळो बधतां-आत्माने निजगुणो प्राप्त करवा अने प्राप्त गुणो कायमी स्थिर रहे, ए माटे प्रबळ इच्छा जागे छे. आत्मानी ए अभिलाषा सफळ थाय ते माटे अनेक आत्माओए विविध प्रकारे मार्गदर्शन कराव्यु छे. आत्मा ए भिन्न भिन्न मार्गे धीरे धीरे आगळ वधतो जाय छे-पण तेने कोई एवो मार्ग नथी मळ्तो के जे मार्गे पागळ वधता ते पूर्णताने प्राप्त करे, एवो मार्ग नथी एम नथी, पण तेनी प्राप्ति सुलभ नथी. एवा शुद्धमार्गने दर्शावनारा करतां ऊंधे मार्गे दोरी जनारा विश्वमा घणां होय छे, एथी पण शुद्धमार्गनी प्राप्तिमां विषमता वधे छे. आ स्थितिमां शुद्धमार्गर्नु स्पष्ट दर्शन कराववा माटे श्रीहरिभद्रसूरिजी महाराजे प्रबळ पुरुषार्थ कर्यो. मार्ग-उन्मार्ग अने कुमार्गर्नु दर्शन करावतो तेओश्रीनो 'शास्त्रवार्ता-समुच्चय' ग्रन्थ ते पूज्यश्रीना प्रबळ पुरुषार्थनी साक्षी पूरतो चिरंजीव जीवे छे. तेश्रोश्रीना विरचित अनेक प्रन्थो छे, पण आ ग्रन्थर्नु महत्त्व कोई जुदुज छे.
SR No.004491
Book TitleKalplatavatarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutsuri
PublisherJain Sahityavardhak Sabha
Publication Year1958
Total Pages322
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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