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________________ [ 16 ] चार्वाकीयमतावकेशिषु फलं, नैवास्ति बौद्धोक्तयः / कर्कन्धूपमितास्तु कण्टकशतै - रत्यन्तदुःखप्रदाः // उन्मादं दधते रसैः पुनरमी, वेदान्ततालमा / गीर्वाणद्रम एष तेन सुधिया, जैनागमः सेव्यताम् // 1 // न काकैश्चार्वाकैः सुगततनयैर्नापि शशकैबकैर्नाद्वैतज्ञैरपि च महिमा यस्य विदितः // . मरालाः सेवन्ते तमिह समयं जैनयतयः / सरोजं स्याद्वाद-प्रकरमकरन्दं कृतधियः // 2 // छेवटे स्याद्वादनी स्तुति करवापूर्वक आठमो स्तवक समाप्त कर्यो छे. ९-स्तवक-नवमा स्तवकमां मोक्षवादनी चर्चा छे. आत्माने मान्या छतां जो मोक्ष-सिद्धि न थाय तो आत्माने मानवो के न मानवो ए बन्ने बराबर छे. मोक्ष शुं छे ? क्यां छे ? केवी रीते ते प्राप्त थाय ? वगेरे विचारोमां ते ते दर्शनो मार्ग-भूल्या मुसाफरनी माफक जेम फावे तेम चलावे जाय छे. या स्तवकमां ते ते सर्वे क्या भूल्या छे ते विचारणा करी छे. तेमां ते ते दर्शनोनी मोक्षविषयक मान्यता केवी छे, ते सङ्गत कई रीते नथी, मोक्षप्राप्तिना साधनोमां केवी विसङ्गतिमो तेओना मते आवे छे वगेरे दर्शाव्युं छे. आज स्तवकमां सम्यग-ज्ञानदर्शनचारित्र ए मोक्षमार्ग छे ए समजाव्युं छे. अने तेमां प्रासङ्गिक दिगम्बरो जे वसधारीने मुक्ति नथी, स्त्रीने मुक्ति नथी, ए प्रमाण माने छे-ते सचोट निरसन कयुं छे. मोक्षनी ते ते दर्शनकारोनी मान्यताप्रोनो श्रा स्तवकमां अपूर्व संग्रह छे. ते मान्यताओ जाणवानी इच्छावालाने माटे आ स्तवक अतिशय उपयोगी के.
SR No.004491
Book TitleKalplatavatarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutsuri
PublisherJain Sahityavardhak Sabha
Publication Year1958
Total Pages322
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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