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________________ [15] आहेतसिद्धान्तनु अहिं करेलु निरूपण टूकमां आ प्रमाणे छे. (1) जगत् जीवाजीवात्मक छे. (2) उत्पादव्ययध्रौव्यस्वरूप सत् छे. ... (3) स्याद्वादथी सत्नी यथावत् विचारणा सङ्गत बने छे. (4) सप्तभङ्गीथी स्याद्वादनु स्वरूप स्थिर थाय छे. (5) नयवाद विसङ्गतिरोने दूर करवा समर्थ छे. आ सर्व सातमा स्तवकमां सारी रीते समजाव्युं छे. ८-स्तवक-आठमा स्तवकमां वेदान्तदर्शननी विचारणा छे. वेदान्तीओ 'ब्रह्म सत् , जगन्मिथ्या' ए सूत्रने प्राधान्य आपे छे. ब्रह्म सिवाय अन्य कोई छेज नहिं, देखातुं जगत् एतो प्रपञ्च छे. माया छे. स्वप्नमां जेम देखाय छे तेना जेतुं छे. अद्वैतवादना निरसन माटे आ एक सरल तर्क याद राखवा जेवो छे. मायाने वेदान्तीओ माने छे. ए माया सत् छे के असत् ? जो सत् छे तो ब्रह्म ए एकज सत् छे, ए रहेतुं नथी. अने जो माया असत् छे तो माया छे एम केम कही शकाय ? ए तो वदतो व्याघात छे. पदार्थ मात्र कूटस्थ नित्य छे एवी पण वेदान्तीनी मान्यता छे. बौद्धोथी तद्दन ऊलटी दिशानी ए विचारणा छे. सापेक्षभावे पदार्थो नित्य छे एम मानवु ए सङ्गत छे. वेदान्ती ज्यां त्यां भ्रमनेज जोया करे छे, ते माटे पू० उपाध्यायजीम. तेने सारी शिक्षा करे छे. ते आप्रमाणे मुक्तौ भ्रान्तिभ्रान्तिरेव प्रपञ्चे, भ्रान्तिः शास्त्रे भ्रान्तिरेव प्रवृत्तौ। कुत्र भ्रान्तिास्ति वेदान्तिनस्ते, क्लृप्ता मूर्ति न्तिभिर्यस्य सर्वा॥ ___aa पछीना बे सूत्रो ते ते दर्शनोनी खासीयतो समजवा माटे याद राखवा जेवा छे. ते श्रा
SR No.004491
Book TitleKalplatavatarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutsuri
PublisherJain Sahityavardhak Sabha
Publication Year1958
Total Pages322
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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