________________ [17] १०-स्तवक-दशमा स्तवकमां मीमांसकोनी मान्यता संबंधी मीमांसा मुख्यत्वे करी छे. ए विचारणाने अनुरूप प्रारंभना त्रण सूक्तो रोचक अने भावपूर्ण छे. ____ मीमांसको सर्वज्ञने स्वीकारता नथी. ए मान्यतानी सिद्धि माटे तेओए घj घणुं लख्यु छे. श्लोकवार्तिक वगेरे ग्रन्थोमां विस्तारथी आ विचारणा आवे छे. अहिं तेनुं संकलन करीने प्रथम तेओ 'सर्वज्ञ नथी' ए विषय केवी रीते रजू करे छे, ए जणाव्यु छेउत्तरपक्षमा 'सर्वज्ञ छे' ए वातनी सिद्धि करी छे. _आ विचारणा करता प्रासङ्गिक-वेद पौरुषेय छे. ए पण विवेच्य छे. प्रमाणपञ्चकनी विवेचना करी छे. वेदविहित हिंसा करणीय छे, ए प्रमाणेना मीमांसकना मन्तव्यनु सखत शब्दोमां खंडन कर्यु छे. सर्वज्ञवादमा अनुरूप केवलभुक्तिनी विशद विचारणा करी छे. दिगम्बरो केवलीने भोजन स्वीकारता नथी, ए मान्यता मिथ्या छे, ए समजाव्यु छे. ए प्रमाणे दशमस्तवक पूर्ण कर्यो छे. . ११-स्तवक- अगीयारमा, स्तवकमां शब्द अने अर्थना सम्बन्धनी विचारणा छे. बौद्धो वगेरे अपोहादिनी जे स्थिति जणावे छे, तेमां केवा दोषो आवे छे, ते सर्व समजाव्यु छे. छेवटे मुक्तिमा जे परमानन्दस्वरूप सुख छे, ते केवु छे, कई रीते छे, इत्यादि तर्कयुक्तिथी सिद्ध कयुं छे. छतां ए अनिर्वचनीय छे, ए पण कयं छे. ___लेवटे ग्रन्थ समाप्त करतां आचार्य श्रीहरिभद्रसूरिजीमहाराजे गभीरश्लोक रच्यो छ, जे वारंवार पठनीय छे. ते आ.. यं बुद्धं बोधयन्तः शिखिजलमरुतस्तुष्टवुर्लोकवृत्त्य, . ज्ञानं यत्रोदपादि प्रतिहतभुवनालोकवन्ध्यत्वहेतुः //