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________________ ५२४-५२५-ताडिअ' आओडिअय' / निसुअं आण्णिा ... निसामिअय। ५२६-५२७–पञ्जत्त' च पहुन / पणामि दिण्ण उवणोअ॥ ५२८-५२९-संदेद्ध संसइअ। धोलेअ ढुंदु लेलआई भमेअ-ऽन्ये ५३०-५३१-सौदट्ठ' अप्पाहि / उल्ल तित्त' च तण्णाय // 185 ५३२-५३३-रंखोटिर' पहोलिर' / उवेल्ल पसरिअ' पयल्लं च / ५३४-५३५-संकोडिअं निउँचिों / उत्तेजिअयं च तोरविअं / 536-537 - ऊसत्त' ओलित्त / पयारिअ वंचि च वेलविरं / 538-539 उम्भालिअ उप्पुणिअ / लहुइअ ओहामिअं तुलिअं॥ ५४०-५४१-पावन्न अभुगय / चिदांवों विउडिअ विणासिअयं / 542-543 अइसइअ च विसेसिअ / उम्मुट्ठ पुछि फुसि / ५४४-५४५-विक्खत्तय पइण्ण' / खित्त निग्धत्तिा च आइद्ध / ५४६-५४७-उग्गाहि उच्चालिअ / अंकुसइअ अंकुसायार' / / 3 522 ताडित. 525 आकर्णित. 526 पर्याप्त. 527 दत्त 528 संदिग्ध 529 भ्रमित 530 संदिष्ट. 535 आई. 532 हिंचकनारु. 533 प्रसृत. '534 निकुंचित. 535 उत्तेजित. 536 अवसिक्त. 537 वंचित. 538 उद्भालित. 539 तुलित. 542 स्वीकारेल. 541 विनाशित. 542 विशेषित. 543 स्पृष्ट. 544 विक्षिप्त. 545 क्षिप्त. 546 उच्चालित. 547 अंकुश जेवु:
SR No.004490
Book TitlePrakrit Vyakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamsagar
PublisherSanyamsagar
Publication Year1986
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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