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________________ (10) स्थल बतलाया है। उपलब्ध महाकाव्यों . में भी सर्वप्रथम किसकी रचना हई यह कहना कठिन है तथापि कालिदास को प्रथम मानने वाले उसके रघवंश और अश्वघोष को पूर्ववर्ती मानने वाले उसके महाकाव्य बद्धचरित को 'प्रथम महाकाव्य' सिद्ध करते हैं। जैनाचार्यों में इस परम्परा का प्रारम्भ पहले प्राकृत में (छठी शती) 'पउमचरिउ' महाकाव्य से हो चका था जिसे संस्कृत में लाने का श्रेय दिगम्बर जैनसाध श्रीरविषेण (सातवीं शती का उत्तरार्ध) को दिया जाता है। यद्यपि यह 'पद्मपुराण' काव्य रसतत्पर तो पूर्णरूप से नहीं बन पाया और पौराणिक पद्धति का ही इसमें अधिक निर्वाह हुआ तथापि अंकुरण की दष्टि से यह मार्गदर्शक अवश्य बना। इसके पश्चात तो चरित्रात्मक कामों की बाढ प्रा गई और रीतिपरिष्कार भी होता रहा। अनेक पौराणिक और जिनचरित्रमूलक काव्यों की सृष्टि हुई। . . जैन-महाकाव्यों की मलभमि 'द्वादशाङ्ग-वाणी' है तथा प्रायः सभी- “सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक-चारित्र्य के द्वारा कोई भी मानव चरमसुख को प्राप्त कर सकता है" इस सन्देश को प्रसारित करते रहे हैं। इन काव्यों में जिनागमानुमोदित - 'साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविकारूप' चतुर्विध संघ को ही समाज मानकर वर्णन किया गया है। काव्यों के नायक तीर्थंकर, भूपति, श्रेष्ठी, सार्थवाह तथा शूरवीर आदि रहे हैं। ऐसे जैन महाकाव्यों का कालक्रम से पर्यालोचन करने पर प्रतीत होता है कि-आठवीं शताब्दी में उत्पन्न श्री जटासिंह नन्दि का 'बराङ्गचरित' महाकाव्य संस्कृत का 'प्रथम जैन महाकाव्य' है / इसमें राजा वराङ्ग का 31 सर्गों में जीवन-चरित्र निबद्ध किया गया है। इसका नायक धीरोदात्त गुणों से समन्वित है तथा 'नगर, ऋतु, उत्सव, क्रीडा, रति, विप्रलम्भ, विवाह, जन्म, राज्याभिषेक, युद्ध, विजय आदि सभी विषयों का यथावश्यक रूप में समावेश हुआ है।
SR No.004489
Book TitleArshbhiyacharit Vijayollas tatha Siddhasahasra Namkosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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