________________ ( 6 ) ऐसे श्री' शब्द का प्रयोग किया है। आर्षभीयचरित से सम्बद्ध प्रति के बारे में आलोचना पूर्ण हुई। .. - विजयोल्लास की प्रति आकार-प्रकार में प्रायः आर्षभीय जैसी ही है। शेष लिपि की बनावट और प्रति की स्थिति अच्छी है / - इन दोनों काव्यों की नहीं अपितु महाकाव्यों की रचना देखते हुए एक नैयायिक भी कैसा सफल साहित्यकार बन सकता है यह देख कर 'शिरसा मनसा मत्यराण वदामि' पूर्वक मस्तक झुक जाता है / आर्षभीय तथा विजयोल्लास इन दोनों काव्यों के बारे में मेरा जो कुछ कथनीय था वह यहां कह दिया है, अब 'सिद्धसहस्र' के सम्बन्ध में लिखता हूं यशोदेवसूरि पालीताणा जैन साहित्य मन्दिर आश्विन शु० पूर्णिमा सं० 2035 1. कतिपय प्राचीन ग्रंथकार ग्रंथ के अन्तिम श्लोक में-पूर्णाहुति में अपने व्यक्तित्व का सूचक कोई भी एक सांकेतिक शब्द रखते थे। उपाध्याय जी ने 'श्री' शब्द पर अपना अनुराग प्रकट किया था। 2. इस चरित्र में श्लोक सं० 132 में 'सार्धत्रयोदश सुवर्ण; 13 // साढ़े तेरह करोड़ सोने की मुद्राओं की वृष्टि की बात नयी ही कही गई है / वैसे तो 12 // साढ़े बारह करोड़ स्वर्ण मुद्राओं की वृष्टि की बात सर्वत्र आती है / विद्वान् विचार करें।