________________ ( 8 ) प्रति इसकी जन्मदात्री भूमि पर ही अभाव, अप्रीति, तिरस्कार तथा अति उपेक्षा के भाव प्रकट हो रहे हैं। विद्यार्थियों का व्यवहार देखकर किसी भी संस्कृतानुरागी भारतीय को दुःख एवं चिन्ता हुए बिना नहीं रहेगी। __चरित्र इसी भाषा में लिखे गए हैं। अतः जब इस भाषा का अनुवाद हो तभी उसका लाभ अधिक लोग प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए प्रयास किया गया किन्तु भाषान्तर करने वालों का दुष्काल, क्लिष्ट भाषा की रचना को भाषा में समझाने वाले कम हो गए हैं। साधु-श्रमणसंघ में भी संस्कृत-भाषा के प्रति आदर की न्यूनता है, इन समीकरणों से तत्काल भाषान्तर हो सके ऐसा सम्भव न होने से यहां नहीं दिया जा सका है। अतः इस ग्रंथ का उपयोग कितना होगा ? इसकी चिन्ता होते हुए भी, चिन्ता न करते हुए उपाध्यायजी की बहुत-सी अत्यन्त मूल्यवान् कृतियां काल के खप्पर में स्वाहा हो गईं वैसी ही स्थिति नवीन उपलब्ध कृतियों की न हो जाए और वे चिरञ्जीवी बनी रहें, इस उद्देश्य से संस्था प्रकाशन-कार्य कर रही है / अब प्रतियों का परिचय प्राप्त करें। आर्षभीय की प्रति का प्रावश्यक परिचय- ' आर्षभीय-चरित की प्रति की लम्बाई पौने दस इंच एक डोरा, चौड़ाई साढ़े चार इंच दो डोरे है। पहले खाने में 13 तेरह पंक्तियां है। प्रारम्भ के पांच कोष्ठकों में एक इंच में चार-से-पांच तक आजाएँ ऐसे बड़े अक्षर लिखे गए हैं। इसके बाद अक्षर छोटे होते जाते हैं / प्रत्येक पत्र में पंक्तियों की संख्या 14 से 16. तक पहुंचती है और अक्षरों की संख्या एक इंच में बढ़ती जाती है। यह प्रति एक ही हाथ से लिखी गई हो ऐसा नहीं लगता। किन्तु बाद का लेखन स्वयं उपाध्यायजी के अपने अक्षरों में हो, ऐसा ज्ञात होता है। प्रति की स्थिति अच्छी है। इसकी एक ही प्रतिलिपि प्राप्त हुई है / लेखन काली श्याही से हुआ है / एक भक्तजन की प्रार्थना पर उसे सुनाने के लिए यह रचना की गई है ऐसा लेखक ने बताया है। साथ ही अन्तिम पद्य में उन्होंने स्वयं को प्रिय