________________ सिद्धसहस्रनामकोशः 167 सर्वादिः५ सर्वगः६ सर्वजनीनः सर्वदर्शनः / सुश्रुत:" सुस्थितः सुस्थः पुराणः" प्राक्तनो" विभुः // 11 // विधिशेषो विधेः सारः परो विधि-निषेधतः / प्रशान्तवाह्य निर्वाच्यो" दिसभागपरिक्षयी (?) " // 12 // अपदो ऽनक्षरोऽनिच्छो" ह्यतयावृत्तिलक्षणः / ब्रह्मचर्यफलीभूतो ब्रह्मा ब्रह्मपदस्थितः // 13 // प्रात्मवान्“ वेदवान् विष्णु ब्रह्मवान्" ब्रह्मसम्भवः'। सूक्ष्मः परात्परो" जेता" जयी सर्वमलोज्झितः / / 14 / / उपासनानां फलद" उपास्यत्वेन देशितः" / सर्वाविप्रतिपन्नश्च कृषीष्ट कुशलानि नः / / 15 / / // इति महोपाध्याय 'श्रीयशोविजयगणि"-समुच्चिते राजनगरवास्तव्यसङ्घमुख्य-साह ‘पनजी' सुश्रूषिते 'सिद्धनामकाशे' प्रथमशतकप्रकाशः // 1 // अदितीयशतकप्रकाशः --- धर्मवि'द्धर्मकृ'द्धर्मी' धर्मात्मा' धर्मदेशकः / . सुधर्मा' . धर्मदो' धर्मनायको धर्मसारथिः // 1 // दशधर्माऽनन्तधर्मा" धर्मसार:१२ स्वधर्मगः" / परधर्मविनिर्मुक्तो" धर्मप्रापी'५ विधर्मभृत् // 2 //