________________ परिचय देकर जन-धर्म और जैन साधु का असाधारण गौरव बढ़ाया था। उनकी शिष्य-सम्पत्ति अल्प ही थी। अनेक विषयों के तलस्पर्शी विद्वान् होते हुए भी 'नव्य-न्याय' को तो ऐसा आत्मसात् किया था कि वे 'नव्यन्याय के अवतार' माने जाते थे। इसी कारण वे 'तार्किक-शिरोमणि' के रूप में विख्यात हो गए थे। जैनसंघ में नव्यन्याय में आप अनन्य विद्वान् थे। जैन सिद्धान्त और उनके त्याग-वैराग्य-प्रधान प्राचारों को नव्यन्याय के माध्यम से तर्कबद्ध करने वाले एकमात्र अद्वितीय उपाध्याय जी ही थे। उनका अवसान गुजरात के बड़ौदा शहर से 16 मील दूर स्थित प्राचीन दर्भावती, वर्तमान डभोई शहर में वि० सं० 1743 में हुआ था। आज उनके देहान्त की भूमि पर एक भव्य स्मारक बनाया गया है जहाँ उनकी वि० सं० 1945 में प्रतिष्ठा की हुई पादुकाएँ पधराई गई हैं। डभोई इस दृष्टि से सौभाग्यशाली है / इस प्रकार संक्षेप में वहाँ के उपाध्याय जी के व्यक्तित्व तथा कृतित्व को छूनेवाली घटनाओं संक्षेप में सच्ची झाँकी कराई गई है / ". पूज्य उपाध्याय जी महाराज ने अपने जीवन-काल में जिन बहाल्य ग्रन्थों की रचना की थी, उनकी परिमार्जित सूची हम इस ग्रन्थ के अन्त नं :कर रहे हैं।' १-इस सूची में अंकित ग्रन्थों के ही अकारादि क्रम से संकलित प्रत्येक ग्रन्थ के आदि और अन्त भाग के अंश तथा ग्रन्थ-प्रशस्ति से युक्त एक ग्रन्थ भी तैयार किया जा रहा है, जिसे शीघ्र ही प्रकाशित करने की योजना है /