________________ 23 भी थे / ' अहमदाबाद के श्रीसंघ के समक्ष और दूसरी बार अहमदाबाद के मुसलमान सूबे की राज्यसभा में आपने अवधान के प्रयोग करके दिखलाये थे। उन्हें देखकर सभी आश्चर्यमुग्ध बन गए थे / मानव की बुद्धि-शक्ति का अद्भुत इस प्रसंग में आपकी स्मृति-तीव्रता के दो अन्य प्रसंग भी बहुचर्चित हैं / जो इस प्रकार हैं 1. बचपन में जसवन्त कुमार जब अपनी माता के साथ उपाश्रय में साधु महाराज को वन्दन करने जाता था, उस समय उनकी माता ने चातुर्मास में प्रतिदिन 'भक्तामर-स्तोत्र' सुनकर ही भोजन बनाने और खाने का नियम लिया था। एक दिन वर्षा इतनी आई कि रुकने का नाम ही नहीं लेती थी। ऐसी स्थिति में माता सोभागदे ने भोजन नहीं बनाया / मध्याह्न का समय भी बीतता जा रहा था। तब बालक जसवन्त ने माता से पूछा कि आज भोजन क्यों नहीं बनाया जा रहा है तो उत्तर मिला'वर्षा के न रुकने से उपाश्रय में जाकर भक्तामर-सुनने का नियम पूरा नहीं हो रहा है। अतः रसोई नहीं बनाई गयी।' यह सुन जसवन्त ने कहा-मैं आपके साथ प्रतिदिन वह स्तोत्र सुनता था अतः वह मुझे याद है ऐसा कह कर वह स्तोत्र यावत् सुना दिया। इस प्रकार बाल्यावस्था में ही उनकी स्मृति तीव्र थी। 2. एक बार वाराणसी में जब अध्ययन पूर्ति पर था और पू० यशोविजयजी ने वाद में विजय प्राप्त कर ली थी तब अध्यापक महोदय अपने पास पाण्डुलिपि के रूप में सुरक्षित एक न्यायग्रन्थ को पढ़ाने में संकोच करने . लगे। वे यह समझते थे कि यदि यह ग्रन्थ भी पढ़ा दिया तो मेरे पास क्या रहेगा ? उपाध्याय जी इस रहस्य को समझ गये थे / अतः एक दिन वह ग्रन्थ देखने के लिए. विनयपूर्वक मांग लिया और मिलने पर रात्रि में स्वयं तथा अपने अन्य सहपाठी मुनिवर ने उस पूरे ग्रन्थ को कण्ठस्थ करके प्रातः लौटा दिया। कहा जाता है कि उस ग्रन्थ में प्रायः 10 हजार श्लोकप्रमाण जितना विषय निबद्ध था। यह भी उनकी धारणा-शक्ति का अपूर्व उदाहरण है।