________________ निष्कर्षरूप परिचय उपाध्यायजी के जीवन का 'निष्कर्षरूप परिचय' 'यशोदोहन' नामक ग्रन्थ में मैंने दिया है वही परिचय यहाँ भी उद्धृत करता हूँ जिससे उपाध्याय जी के जीवन की कुछ विशिष्ट झांकी होगी। * "विक्रम की सत्रहवी शती में उत्पन्न, जैनधर्म के परम प्रभावक, जनदर्शन के महान् दार्शनिक, जैनतर्क के महान् तार्किक, षड्दर्शनवेत्ता और गुजरात के महान् ज्योतिर्धर, श्रीमद् यशोविजयजी महाराज एक जैन मुनिवर थे। योग्य समय पर अहमदाबाद के जैन श्रीसंघ द्वारा समर्पित उपाध्याय पद के विरुद के कारण वे 'उपाध्यायजी बने थे। सामान्यतः व्यक्ति विशेष नाम' से ही जाना जाता है किन्तु इसके लिए यह कुछ नवीनता की बात थी कि जैन संघ में आप विशेष्य से नहीं अपितु 'विशेषण' द्वारा मुख्य रूप से जाने जाते थे। "उपाध्यायजी ऐसा कहते हैं, यह तो उपाध्याय जी का वचन है" इस प्रकार उपाध्यायजी शब्द से श्रीमद् यशोविजयजी का ग्रहण होता था। विशेष्य भी विशेषण का पर्यायवाची बन गया था। ऐसी घटना विरल व्यक्तियों के लिए ही होती है / इनके लिए तो यह घटना वस्तुतः गौरवास्पद थी। इसके अतिरिक्त उपाध्याय जी के वचनों के सम्बन्ध में भी ऐसी ही एक और विशिष्ट एवं विरल घटना है। इनकी वाणी, वचन अथवा विचार 'टंकशाली' ऐसे विशेषण से प्रसिद्ध हैं। तथा 'उपाध्याय जी की साख (साक्षी) 'पागमशास्त्र' अर्थात् शास्त्रवचन ही है' ऐसी भी प्रसिद्धि है। आधुनिक एक विद्वान् आचार्य ने आपको 'वर्तमान काल के महावीर' के रूप में भी व्यक्त किया था। 1. देखिए 'यशोदोहन' पृ० 6-12 में सम्पादकीय निवेदन / यह ग्रन्थ गुजराती भाषा में 'प्रो० हीरालाल रसिकदास कापड़िया' द्वारा लिखित है तथा यशोभारती जैन प्रकाशन समिति, बम्बई से प्रकाशित हुआ है।