________________ 19 शिष्य-सम्पदा की दृष्टि से श्री उपाध्याय जी महाराज के अपने छह शिष्य थे, ऐसी लिखित सूचना प्राप्त होती है।' विभिन्न विरुद-प्राप्ति ___ उपाध्याय जी ने स्वयं लिखा है कि 'न्याय के ग्रन्थों की रचना करने से मुझे 'न्यायाचार्य' का विरुद विद्वानों ने प्रदान किया है। इसके अतिरिक्त आपको 'न्यायविशारद, कवि, लघुहरिभद्र, कूर्चालीशारद तथा ताकिक' प्रादि गौरवपूर्ण विरुदों से भी विद्वानों ने अलंकृत किया था।' उपाध्यायजी ने अनेक स्थानों पर विचरण किया था किन्तु प्रमुख रूप से वे गुजरात और राजस्थान में रहे होंगे ऐसा उनके ग्रन्थों एवं स्तुतियों से ज्ञात होता है। स्वर्गवास एवं स्मारक . 'सुजसबेली' के आधार पर उनका अन्तिम चातुर्मास बड़ौदा शहर के पास डभोई (दर्भावती) गाँव में हुआ और वहीं वे स्वर्गवासी हुए। इस स्वर्गवास का वर्ष सुजसबेलि के कथनानुसार सं० 1743 था तदनन्तर उनका स्मारक डभोई में उनके अग्निसंस्कार के स्थान पर बनाया गया और वहाँ उनकी चरणपादुका स्थापित की गई। पादुकाओं पर वि० सं० 1745 में प्रतिष्ठा करने का उल्लेख है। 1. इन शिष्यों के छः नाम-हेम विजय, जितविजय, पं० गुणविजयगणि, दयाविजय, मयाविजय, मानविजयगणि आदि प्राप्त होते हैं। 2. जैसलमेर से लिखित पत्र में आपने लिखा था कि-"न्यायाचार्य विरुद तो भट्टाचार्यई न्यायग्रन्थ रचना करी देखी प्रसन्न हुई दिऊं छई।" .. 3. तर्कभाषा (प्रशस्ति पद्य 4) तत्त्वविवेक (प्रारम्भ पद्य 2) तथा सुज सबेलि में इनका उल्लेख है।