________________ माः, .. प्रार्षभीय-चरित-महाकाव्यम् ( 120.) इति मोहनृपस्मयक्षय. क्षममाश्रित्य चरित्रभूपतिम् / .. कृततद्विजया भजन्तु भोः, सुखमध्यात्मपुरप्रभुत्वजम् // . ( 121 ) लभते यदमय॑नायको, ... मणिसिंहासनमाश्रितो दिवि। . अपि शर्म वने तृणस्थितो, मुनिरध्यात्मरतिस्ततोऽधिकम् // - ( 122 ) मुनये वितरन्ति यां मुवं, सहजाध्यात्मरसस्य विपुषः / लहरी न चरीकरीति तामपि पीयूषसमुद्रसम्भवा / / ( 123 ) धनिनामभिमानमात्रज, __ सुखमध्यात्मविदां तु तात्त्विकम् / अनयोरियदन्तरं पुन भवपल्ली शबरन लक्ष्यते //