________________ ( 44 ) पूर्वोक्त ग्रन्थों में प्रधान सम्पादक के रूप में प्राचार्य श्रीयशोदेवसूरि जी महाराज ने विस्तार-पूर्वक भूमिकाएं लिखी हैं और मुझे भी साथ ही उपोद्धात लिखने में पूरा मार्ग निर्देशन किया है। ऐसी अपूर्व तन्मयता, शास्त्रनिष्ठा एव श्री उपाध्याय जी महाराज की समग्र कृतियों को प्रकाश में लाने की उत्कृष्ट अभिलाषा रखकर उसके लिए निरन्तर संलग्न रहने वाले पूज्य आचार्य श्री यशोदेवसूरि जी महाराज के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से हमारा पाठक-समुदाय भी परिचित होकर प्रेरणा प्राप्त करे इस दृष्टि से उनका संक्षिप्त जीवन चरित्र भी यहां देना मैं आवश्यक समझता हूँ / जो कि इस प्रकार है प्रधान सम्पादक आचार्य श्री यशोदेवसूरि जी महाराज जन्म एवं परिवार गजरात की प्राचीन दर्भावती नगरी प्राज 'डभोई' नाम से प्रसिद्ध है। इस ऐतिहासिक नगरी में वि. सं. 1672 की पौष शुक्ला द्वितीया के दिन बीसा श्रीमाली जाति के धर्म-परायण सुश्रावक 'श्री नाथालाल वीरचन्दशाह' के यहां पुण्यबती राधिका बहिन' की कोखं से आपका जन्म हुमा / मापका नाम . 'जीवनलाल' रखा गया। आपके तीन बड़े भाई और दो. बड़ी बहिनें थीं। आपके जन्म से पूर्व ही पिता परलोकवासी हो गए थे। पाँच वर्ष की आयु में माता का भी स्वर्गवास हो गथा / इस प्रकार बाल्यावस्था में मातापिता की छत्रछाया उठ गई थी, किन्तु ज्येष्ठबन्धु नगीन भाई ने बड़ी ही ममता से आपका लालन-पालन किया, अतः माता-पिता के प्रभाव का अनुभव नहीं हुआ। विद्याभ्यास तथा प्रतिभा-विकास आप पांच वर्ष की आयु में विद्यालय में प्रविष्ट हुए और धार्मिक पाठशाला में जाने लगे। नौ-दस वर्ष की वय में संगीत-कला के प्रति मुख्यरूपेण आकर्षण होने के