________________ ( 43 ) होने ही चाहिये। इसी दृष्टि से मूल-स्तोत्र के अन्त में “प्रोंकारादि नमोऽन्त" पद युक्त प्रत्येक नाम के साथ चतुर्थी विभक्ति का एकवचन लगाकर नामावली को भी प्रकाशित कर दिया है / ऐसे स्तोत्र और नामावली के पुरश्चरण का भी विधान अन्य ग्रन्थों में निर्दिष्ट है तथा विभिन्न प्रकार की पाठ-प्रक्रियाएं भी वहां सूचित हैं। इनके बारे में हमने 'श्रीमदापदुद्धारकबटक भैरवस्तोत्रम् ग्रन्थ-की भूमिका में विस्तार से लिखा है, पाठकगण वहीं देखें। इस नामावली में संग्रहीत नामों का पाठ भी स्तोत्र के समान ही किया जा सकता है और पूजा के समय प्रतिमा पर अथवा यन्त्र पर प्रत्येक नाम के साथ पूष्प, फल आदि चढाने का भी विधान है। वैदिक सम्प्रदाय में केशर, कुंकूम, बिल्वपत्र, पुष्प, फल (गीले और सूखे). दक्षिणा अादि चढ़ाये जाते हैं। काम्य-कर्मों की सिद्धि के लिए परमात्मा की कृपा प्राप्त करने में प्रत्येक नाम के साथ बीज मन्त्र, मन्त्र एवं अन्त में 'अमुकं कायं साधय-साधय' ऐसे पद भी जोड़े जाते हैं / साधना के इच्छुक अपनी-अपनी परम्परा और गुरूपदेश के अनुसार प्रयोग करके लाभ उठाएं, यही कामना है। प्रात्म-निवेदन--विगत कुछ वर्षों से मुझे यह सौभाग्य प्राप्त हुआ है कि मैं अपनी अन्यान्य प्रवत्तियों के साथ ही न्यायविशारद, न्यायाचाय, महोपाध्याय श्रीमदयशोविजयजी महाराज की कृतियों के प्रकाशन में पूज्य आचार्य श्रीयशोदेव सूरिजी महाराज की सत्प्रेरणा से सहयोगी बना और इसी के परिणाम स्वरूप स्तोत्रावली (हिन्दी अनुवाद सहित) तथा (दो उल्लासों पर श्रीयशोविजयजी महाराज द्वारा रचित टीका और उसके हिन्दी अनुवाद सहित) 'काव्यप्रकाश' का प्रकाशन हो चुका है / अब अन्य कुछ ग्रन्थों का प्रकाशन भी शीघ्र हो रहा है / 1. इसका प्रथम संस्करण समाप्त है। द्वितीय संस्करण रंजन पब्लिकेशन्स, दरीवाँ, दिल्ली-६, से छप रहा है /