________________ (42) कापड़िया रचित 'यशोदोहन' ग्रन्थ तथा 50 पूज्य. पं. श्री यशोविजयजी महाराज द्वारा सम्पादित तथा उनकी प्रेरणा से सम्पादित उ० श्रीयशोबिजयजी रचित ग्रन्थों को देखने का सुझाव देता है। ये ग्रन्थ 'यशोभारती जैन प्रकाशन समिति' द्वारा प्रकाशित हुए हैं / उच्चारण आदि के कारण जिन्हें संस्कृत भाषा कठिन लगती हो ऐसे धर्माभिमुख वर्ग की दृष्टि से सर्वसाधारण लोकभाषा में सिद्ध सहस्रनाम वर्णन छन्द' की रचना भी उ० श्रीयशोविजयजी ने की है / इस छन्द की सम्पूर्ण प्रति उपलब्ध नहीं हुई है। किन्तु जो भाग उपलब्ध है उसका प्रथम प्रकाशन 'श्रीमद् यशोविजयोपाध्यायविरचित गूर्जर साहित्य संग्रह' नामक ग्रन्थ में हुआ है। इसी के आधार पर जैनधर्म प्रसारक सभा (भावनगर) द्वारा प्रकाशित 'अर्हन्नामसहस्र-समुच्चय' नामक पुस्तिका में छपे हुए विविध स्तोत्रों के साथ इस सिद्धसहस्रनामवर्णन छन्द' को पुनः मुद्रित किया है। इस पूनम द्रण में प्रस्तुत छन्द के कर्ता उ० श्रीयशोविजयजी होंगे अथवा नहीं? ऐसी शङ्का की गई है। इसके विपरीत-प्रत्युत्तर' में 'यशोदोहन' ग्रन्थ में प्रो० कापडिया ने 'प्रस्तुत छन्द के कर्ता उ० श्री यशोविजयजी क्यों नहीं हो सकते ? यह बतलाया है। कापड़िया के इस विधान की प्रस्तुत 'सिद्धनामकोश' पुष्टि करता है। प्रकाशित 'सिद्धसहस्रनामवर्णन छन्द' में एक हजार नाम नहीं हैं यह ठीक है' किन्तु उसके प्रारम्भ में मङ्गलाचरण नहीं है, इससे यह अनुमान किया जा सकता है कि "सिद्धनामकोश, के समान ही 'सिद्धसहस्रनाम वर्णन छन्द' में भी एक सौ अथवा उनसे अधिक शब्दों के समुच्चयरूप में विभाग किये हों......... / ' इस प्रकार यह कृति कितनी महत्त्वपूर्ण है, यह पाठक स्वयं अनुभव कर सकते हैं / जब 'सहस्रनाम-स्तोत्र' की रचना हुई है तो उसके प्रयोग भी 1. द्रष्टव्य-इसका १३३वां पृष्ठ, प्रकाशक बाबचन्द गोपालजी बम्बई /