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________________ ( 40 ) संग्रहीत किया है। इस प्रकार यह कोश 'सिद्ध' शब्द के 100 शब्दों का संग्रह है। जिस प्रकार सुप्रसिद्ध प्राचार्य श्री हेमचन्द्रसूरि ने महाराजा कुमार पाल देव के लिए निर्मित वीतरागस्तोत्र के प्रत्येक विभाग के अन्त में 'श्रीकुमारपालभूपालसुश्र षिते' लिखा है उसी प्रकार प्रस्तुत 'सिद्ध नामकोश' के प्रत्येक विभागप्रकाश के अन्त में दी गई पुष्पिका के भी “सा" पनजीसुश्रूषिते' लिखा है। इससे ज्ञात होता है कि प्रस्तुत सिद्धनामकोश' की रचना राजनगर (अहमदाबाद) वास्तव्य संघमुख्य रतनशाह के पुत्र संघमुख्य पनजी शाह के लिए हुई है। प्रत्येक प्रकाश के अन्त में दी गई पुष्पिका में इस कोश का सिद्धनामकोश' के नाम से ही उल्लेख किया है अतः मैंने भी इसी नाम से सम्बोधित किया है और इसी को मुख्य माना है। परन्तु . 'य०' प्रति में दसवे शतक की पुष्पिका के पश्चात् समग्र रचना के अन्त को सूचित करने वाली 'सम्पूर्णमिदं सिद्धसहस्रनामप्रकरणम्' इस पुष्पिका के आधार पर इस कोश का दूसरा नाम "सिद्धसहस्रनामप्रकरण' भी ग्रन्थकार को अभिमत है / ग्रन्थकार का नाम जिसमें उल्लिखित है उस शार्दूलविक्रीडित छन्द के अतिरिक्त समग्र रचना अनुष्टुप् छन्द में है। प्रथम प्रकाश के तीसरे पद्य से दसवें शतक के बारहवें पद्य तक सिद्ध के 1008 नाम हैं, प्रथम पद्य में "जिसके प्रणिधान से इन्द्र सम्बन्धी श्री की प्राप्ति" यह तो आनुषङ्गिक फल है किन्तु मुख्य फल तो महोदय-सिद्धि की प्राप्ति है ऐसे सिद्ध का हम ध्यान करते हैं, ऐसा बतलाया है। तथा द्वितीय पद्य में "सिद्ध के 1008 नाम का स्मरण, यह सज्जनों के लिये शरणरूप है तथा सर्व मङ्गलों में श्रेष्ठ मङ्गल रूप है" यह कहा है / 1. द्रष्टव्य-प्रत्येक के अन्त में दी गई पुष्पिका पनजी शाह के पिता के नाम का उल्लेख दसवें प्रकाश की अन्तिम पुष्पिका में है।
SR No.004489
Book TitleArshbhiyacharit Vijayollas tatha Siddhasahasra Namkosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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