________________ ( 28 ) . यस्त्यक्त्वा नामसाहस्रं पापहानिमभीप्सति / स हि शोतनिवृत्त्यर्थ हिमशैल निषेवते // 250 // तथा-कलौ पापैकबहुले धर्मानुष्ठानजिते / नामानुकीर्तनं मुक्त्वा नृणां नान्यत् परायणम् // 301 // अर्थात् सहस्रनाम-स्मरण को छोड़कर जो पापहानि चाहता है, वह शीत की निवृत्ति के लिये हिमालय का आश्रय लेता है, ऐसा समझना चाहिये। तथा कलियुग में पाप की अधिकता एवं धर्मानुष्ठान की न्यूनता होने के कारण सहस्रनाम-स्मरण के अतिरिक्त अन्य कोई मार्ग ही नहीं है। यहीं सहस्रनाम के बारे में अन्यान्य माहात्म्य प्रदर्शित कर लौकिक वचनों की अपेक्षा नामस्मरण की विशेषता तथा उपास्यदेव के अनन्त नामों में से संगहीत. एक हजार नामों के स्मरण की विशिष्टता भी बतलाई है। ऐसे हजार नामों में भी जो रहस्यनाम हों उनका महत्त्व और भी विशिष्ट होता है। उदाहरणार्थ वहां कहा गया है कि देवीनाम सहस्राणि कोटिशः सन्ति कुम्भज // तेषु मुख्यं दशविधं नामसाहस्रमुच्यते // रहस्यनामसाहस्रमिदं शस्तं दशस्नपि // 303-4 // इसके अनुसार करोड़ों सहस्रनामों में दस प्रकार के सहस्रनाम' मुख्य हैं और उनमें भी रहस्यनामसहस्र प्रमुख है / इत्यादि / 1. ये दस प्रकार के सहस्रनाम 'सौभाग्य-भास्कर' भाष्य में भी भास्करराय मखी ने 'गङ्गाश्यालकाबालरासभाः' इस गुप्ताक्षर पद्धति से व्यक्त करके निम्न पद्य दिया है गङ्गा भवानी गायत्री काली लक्ष्मीः सरस्वती। राजराजेश्वरी वाला श्यामला ललिता दश / /